Brain Eating Amoeba: दिमाग खाने वाले अमीबा ने ली एक और जान, दिमाग के अंदर कैसे करता है प्रवेश, क्या है ये बीमारी?

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केरल में 15 साल के बच्चे की अमीबा से होने वाले संक्रमण के चलते हुई मौत चर्चा का विषय बनी हुई है। इस अमीबा को वैज्ञानिक भाषा में नेगलेरिया फाउलेरी (Naegleria fowleri) कहा जाता है जिसे आम बोलचाल वाली भाषा में ब्रेन ईटिंग अमीबा (brain-eating amoeba) अर्थात दिमाग खाने वाला अमीबा भी कहा जा सकता है। यह अमीबा दिमाग में जाकर दिमाग के टिश्यूज का नष्ट कर देता है इसी कारण से इसका यह नाम रखा गया है। अमीबा के ग्रसित होने पर इस बीमारी को अमीबिक मेनिंगोएन्सेफलाइटिस बीमारी कहा जाता है। संक्षेप में इस बीमारी को PAM भीय कहा जाता है।

डाक्टरों के अनुसार यह बीमारी अमीबा नाम के जीव के कारण होती है। यह जीव इंसान के शरीर में पहुंचते ही उसके दिमाग पर हमला करता है। दिमाग में पहुंचने के बाद यह जीव दिमाग के अंदर के मांस को खा जाता है। इस बीमारी के ग्रसित होने के पांच से दस दिन के अंदर इंसान की मौत हो जाती है। इस मामले में केरल के स्वास्थ्य मंत्री वीणा जॉर्ज ने बताया कि यह कोई नई बीमारी नहीं है। इससे पहले भी इस प्रकार के कई मामले आ चुके हैं। भारत में पहला मामला 2016 में सामने आया था। 

अमीबा क्या है?

डॉक्टर के अनुसार अमीबा एक कोशिकीय जीव को कहा जाता है। यह स्वयं से ही अपना आकार बदल सकता है। अमूमन यह तालाब, झील या धीमी गति से बहने वाली नदियों में पाया जाता है। यह पृथ्वी पर पाए जाने वाले सबसे पुराने जीवों अर्थात प्रिमिटिव जीवों में से एक है। यह बैक्टीरिया, वायरस या फंगल से पूरी तरह अलग होते हैं। अधिकांशत: यह जीव गर्म पानी में पाया जाता है विशेष रूप से गंदे और जमे हुए पानी में इसके होने की संभावना सबसे अधिक होती है।

 नेगलेरिया फाउलेरी अमीबा दिमाग के अंदर घुसकर दिमाग के मांस को धीरे धीरे खाता रहता है जिससे दिमांग में संक्रमण फैलने लगता है और दिमाग में सूजन आ जाती है और बाद मी मरीज की मौत हो जाती है। इस जीव की पहचान सबसे पहले 1962 में हुई थी। तब से लेकर अब तक दुनियाभर में 300 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं। सबसे अधिक 150 मामले अमेरिका से आए हैं।

कैसे करता है यह अमीबा शरीर में प्रवेश?

डॉक्टरों के अनुसार जब कोई इंसान गंदे और जमे हुए नदी, तालाब, पोखर या झील के पानी में गोता लगाता है तो इंसान की नाक के रास्ते यह शरीर में प्रवेश कर जाता है। नाक में प्रवेश के बाद यह जीव नाक की ओल्फक्ट्री नर्व से चिपक जाता है। बता दे इसी नर्व की मद्द से इंसान किसी भी प्रकार की गंध को महसूस करता है। इसी नर्व के सहारे यह जीव दिमाग में पहुंचकर चिपक जाता है और धीरे धीरे दिमाग के टिश्यू को नुक्सान पहुंचाने लगता है। इस प्रकार यह जीव दिमाग के मांस को चूसकर अपना पेट भरता है।

क्या होते हैं लक्षण?

इंसान के शरीर में प्रवेश करते ही अमीबा जीव इंफेक्शन फैलाना शुरू कर देता है। रंभ में इसके लक्षण मेनिनजाइटिस संक्रमण के लक्षण तरह ही दिखते हैं जिसमें सिरदर्द, उल्टी और बुखार होता है। लेकिन बाद में मरीज की गर्दन अकडने और दौरे भी आने शुरू हो जाते हैं। कई बार संक्रमण के कारण मरीज कोमा तक में चला जाता है। इसके लक्षण 1 दिन से लेकर 12 दिन में दिखने शुरू हो जाते हैं।

क्या यह बीमारी एक आदमी से दूसरे आदमी मे भी फैलती है?

डॉक्टरों के अनुसार इस बीमरी का सबसे पहले पता 1962 में लगा था। तब से लेकर अभी तक इस बीमारी के एक इंसान से दूसरे इंसान में फैलने का कोई प्रमाण नहीं मिला है। जांच में भी पाया गया है कि यह बीमारी एक इंसान से दूसरे इंसान में नहीं फैलती है। हालांकि इस बीमारी में मृत्यु दर 98 प्रतिशत पाई गई है। भारत में इस बीमारी की मृत्युदर शतप्रतिशत है।

क्या है इसका इलाज?

अभी तक इसका को अचूक इलाज नहीं मिल पाया है। संक्रमित मरीज का इलाज मेंनिनजाईटिस के द्वारा किया जाता है। सतर्कता और बचाव ही इसका सही इलाज है। वैज्ञानिकों के अनुसार यह जीव साधारण तौर पर गर्म पानी वाली नदी, झील और झरनों में मिलते हैं। इसके अतिरिक्त फैक्ट्रियों से निकले वाले गंदे पानी, जमीन के अंदर के गर्म पानी और स्विमिंग पूल के साथ साथ नल के पानी में भी यह जीव मिल चुके हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस बीमारी से बचने के लिए लोगों को पीने से साथ साथ नहाने के लिए भी साफ पानी का प्रयोग करना चाहिए।

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