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India-China: इतना आसान नहीं भारत-चीन समझौता, कई मुश्किलों का निकालना होगा हल, समझौते के लिए करना होगा इंतजार

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पांच साल बाद पहली बार ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच द्विपक्षीय बातचीत हुई। इस बातचीत में पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर गतिरोध खत्म करने को लेकर बनी सहमति का स्वागत किया गया। बैठक में दोनों देशों में इस बात पर सहमति बनी कि द्विपक्षीय संबंधों की मजबूती में ही दोनों देशों का हित है। जहां भारत ने अपने बयान में पेट्रोलिंग अरेंजमेंट का जिक्र किया था, वहीं चीन ने इससे दूरी बनाई। जिसके बाद चीन की ईमानदारी को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं।

बता दें सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी पहले ही इशारों में बफर का सम्मान करने को लेकर चीन पर प्रश्नचिन्ह उठा चुके हैं। संदेह जताया जा रहा है कि कहीं जब स्पेशल रिप्रजेंटेटिव स्तर की बातचीत शुरू हो तो चीन कहीं भारत के साथ अपने पुराने अड़ियल रवैये पर चलना न शुरू कर दे। सूत्रों का कहना है कि जब तक तीन ‘डी’ का सर्किल पूरा न हो जाए, तब तक संबंध सामान्य की आस रखना फिजूल है। 

विशेष प्रतिनिधि वार्ता से शुरुआत

ब्रिक्स में प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच बुधवार को हुई। पिछली बार यह बैठक पांच साल पूर्व ब्रासीलिया 2019 में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान हुई थी। इस बैठक में दोनों नेताओं ने पिछले कई सप्ताहों से कूटनीतिक और सैन्य माध्यमों से चल रही निरंतर बातचीत से हुए समझौते का स्वागत किया। प्रधानमंत्री मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि सीमा संबंधी मामलों पर पैदा हुए मतभेदों का हमारी सीमाओं पर शांति और सौहार्द पर कोई असर न हो।

वहीं इस बैठक में सहमति बनी कि दोनों देशों के वास्तविक नियंत्रण रेखा को लेकर हुए पेट्रोलिंग समझौते को लेकर  जल्द से जल्द बातचीत आगे बढ़ाई जाए और इसके लिए विशेष प्रतिनिधि स्तर की वार्ता फिर से शुरू की जाए। बता दें कि आखिरी बार विशेष प्रतिनिधि स्तर की वार्ता मौजूदा एनएसए अजित डोभाल और चीनी विदेश मंत्री वांग यी की बीच दिसंबर 2019 में हुई थी।

डब्ल्यूएमसीसी की बैठक में ही बन गई थी सहमति
अंतरराष्ट्रीय और रक्षा मामलों के जानकार और पूर्व सैन्य अधिकारी प्रवीण साहनी ने बताया कि जैसा कि उन्हें जानकारी मिली है कि प्रधानमंत्री मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच होने वाली बैठक का आधार तैयार करने के लिए, चीनी वार्ताकारों ने 29 अगस्त को बीजिंग में आयोजित डब्ल्यूएमसीसी की 31वीं बैठक में ही अपने भारतीय समकक्षों के सामने सैनिकों की वापसी, पेट्रोलिंग और चरागाह व्यवस्था शुरू करने की पेशकश पहले ही कर दी थी।

वह कहते हैं कि इस प्रस्ताव को दो चरणों में लागू किया जाना है। पहले चरण में, दोनों देश पूर्वी लद्दाख में दो शेष टकराव के पॉइंट देपसांग और डेमचोक में एक-दूसरे के इलाके में दो किलोमीटर अंदर तक गश्त कर सकेंगे और मवेशियों को चरने के लिए भेजेंगे। वहीं गश्त की जानकारी एक-दूसरे को पहले ही देनी होगी।

दोनों देशों को गश्त करने वाले जवानों की संख्या, समय और पेट्रोलिंग की अवधि के बारे में सूचित करना होगा। पेट्रोलिंग की सूचना पहले मिलने से गलतफहमी से बचने में मदद मिलेगी।

चीन चाहता है भारत के साथ सामान्य संबंध

पहले चरण में दोनों पक्ष अपनी सेनाओं को पीछे हटाना शुरू करेंगे और चार किलोमीटर का बफर जोन बनाएंगे। जहां दोनों पक्ष एक-दूसरे को सूचित किए बिना नियमित पेट्रोलिंग कर सकेंगे। साहनी के अनुसार एक बार जब सेना पीछे हट जाएंगी, तो दोनों पक्ष सीमा क्षेत्रों के प्रबंधन के लिए नए विश्वास-निर्माण उपायों पर काम शुरू करेंगे। क्योंकि वास्तविक नियंत्रण रेखा को बफर जोन में बदल दिया जाएगा।

उन्होंने बताया कि 10 सितंबर, 2020 को मॉस्को में विदेश मंत्रियों जयशंकर और वांग यी ने जिस संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर किए थे, उनमें भी दोनों पक्षों ने इस पर सहमति व्यक्त की थी। वहीं बस इसमें डिएस्क्लेशन का कोई जिक्र नहीं था। वह कहते हैं कि चीन की पेशकश को भारत की तरफ से पूरी तरह स्वीकार किया जाना, इस बात का सबूत है कि चीन भारत के साथ संबंधों को सामान्य बनाने का इच्छुक है। चीन और रूस चाहते हैं कि भारत ब्रिक्स को मजबूत करे, जिससे वैश्विक भूराजनीति में स्थिरता लाने में मदद मिलेगी। 

पेट्रोलिंग समझौते और डिसइंगेजमेंट का ही जिक्र

वहीं रक्षा मामलों के जानकार पूर्व सैन्य अधिकारी सुशांत सिंह ने बताया कि विदेश सचिव की पहले और बाद की प्रेस ब्रीफिंग से यह स्पष्ट हो गया है कि पूर्वी लद्दाख में भारतीय सैनिकों के सभी पेट्रोलिंग राइट्स बहाल नहीं किए गए हैं। क्योंकि बफर जोन पहले की तरह ही बने हुए हैं। पूर्वी लद्दाख में दोनों पक्षों की तरफ से डी-एस्केलेशन और डीइंडक्शन पर कोई चर्चा नहीं हुई है, जो अप्रैल 2020 से पहले की यथास्थिति बहाल करने के लिए जरूरी हैं।

उन्होंने केवल पेट्रोलिंग समझौते औऱ डिसइंगेजमेंट का ही जिक्र किया है। वह आगे कहते हैं कि सरकार की तरफ से पेट्रोलिंग समझौते और इसके लिए समय-सीमा की भी कोई जानकारी शेयर नहीं गई है। इस तरह की गोपनीयता संदेह पैदा करती है। वह संशय जताते हुए कहते हैं कि देपसांग में गश्त समझौते के बारे में कोई क्लैरिटी नहीं है। साथ ही, बदले में चीन को क्या अधिकार मिले हैं, यह भी जानकारी मिलनी चाहिए। 

पहले वाली स्थिति बनाने के लिए जरूरी है तीन डी का चक्र

गौरतलब हो कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अप्रैल 2020 से पहली वाली स्थिति तब मानी जाएगी, तब तीन डी का चक्र पूरा होगा, इनमें डिसइंगेजमेंट, डीएस्केलेशन और डीइंक्शन शामिल हैं। अभी तक की बनी सहमति के हिसाब से देपसांग और डेमचॉक में पहला चरण यानी डिसइंगेजमेंट पूरा होगा। यानी कि सैनिकों आमने-सामने से हटेंगे।

दूसरे चरण में डीएस्केलेशन, इसमें दोनों देशों के सैनिक और सैन्य साजोसामान को हटाया जाएगा। इसके बाद डीइंडक्शन, जिसमें सैनिकों और सैन्य साजो सामान को वहां से हटा कर पुरानी जगहों पर भेजना शामिल है।

करना होगा सर्दी समाप्त होने का इंतजार

सूत्रों की माने तो विदेश सचिव ने देपसांग और डेमचॉक में डिसइंगेजमेंट को लेकर सहमति जताई है। पहले इन दो इलाकों में ही पेट्रोलिंग शुरू होगी। हालांकि इस पर अभी लोकल मिलिट्री कमांडर स्तर बातचीत चल रही है कि पेट्रोलिंग की फ्रिक्वेंसी क्या होगी और पेट्रोलिंग टीम में कितने सैनिक होंगे।

सूत्र कहते हैं कि हालांकि सर्दियों में वापस बुलाए जाने वाले सैनिकों के अलावा तत्काल सैनिकों की संख्या में कोई कमी होने की संभावना नहीं है, जैसा कि आमतौर पर होता है। वह कहते हैं कि इन सर्दियों में तो कुछ नहीं होने वाला क्योंकि सर्दियां शुरू होते ही गश्त फिर से बंद हो जाएगी। इस दौरान दोनों देश डिसइंगेजमेंट को लेकर चर्चा करते रहेंगे। वह कहते हैं कि पेट्रोलिंग के लिए नए प्रोटोकॉल पर सहमति बन गई है।

दोनों पक्षों के बीच हुए समझौते के अनुसार, 2020 से पहले की तरह ही सभी क्षेत्रों में गश्त की जाएगी, जिसमें डेपसांग, पीपी 10 से पीपी 13 तक शामिल हैं। वहीं पेट्रोलिंग की फ्रिक्वेंसी महीने में दो बार होगी और किसी भी तरह के टकराव से बचने के लिए 15 जवानों की टीम गश्त करेगी। 

प्रत्येक माह होगी बातचीत

सूत्रों के अनुसार इस दौरान दोनों देशों के बीच सीमा समझौतों को लेकर विश्वास बहाली के उपाय जारी रहेंगे और यूनिट्स के कमांडिंग अफसरों और कमांडरों के स्तर पर हर महीने कम से कम एक बार बातचीत होगी। वहीं, अन्य जगहों पर, जहां पहले ही सैनिकों की वापसी हो चुकी थी और बफर जोन बनाए जा चुके हैं जैसे पैंगोंग त्सो के उत्तरी किनारे, गलवां, हॉट स्प्रिंग्स और गोगरा में दोनों देशों के सैनिक पेट्रोलिंग फिर से शुरू करेंगे।

साथ ही, अप्रैल 2020 के बाद डेमचोक में चीन के टेंटों को हटाया जाएगा, तो भारतीय सेना भी अपने टेंटों को हटाएगी। देपसांग में चीनी और भारतीय सैनिक ब्लॉकिंग वाली जगह से पीछे हटेंगे। सूत्रों का कहना है कि इसे भी ग्राउंड में लागू होने में वक्त लगेगा। क्योंकि निगरानी के मैकनिजम को लेकर अभी कुछ तय नही हुआ है। इसे लेकर देपसांग और डेमचॉक में स्थानीय सैन्य नेतृत्व तय करेगा कि क्या मैकेनिजम होगा। 

न भूलें चीन का पुराना रवैया
भारत के पूर्व राजदूत डिप्लोमेट गौतम बंबावले का कहते हैं कि सरकार के बयानों को देख कर लगता है कि समस्या सुलझ गई है, लेकिन क्या भारत और चीन के बीच संबंध 2019 जैसे हो जाएंगे? इस पर वे कहते हैं कि दुर्भाग्य से, ऐसा नहीं है। हम 2020 से 2024 के बीच पिछले साढ़े चार सालों में चीन के साथ अपने अनुभव को नजरअंदाज नहीं कर सकते।

चीन की हरकतों के चलते ही दोनों सरकारों के बीच भरोसा खत्म हुआ है। इसे पूर्व की स्थिति में लाने के लिए एक-एक कदम उठा कर ही फिर से बहाल किया जा सकता है। वह कहते हैं कि पूर्वी लद्दाख से पहले के भरोसे के स्तर पर पहुंचने में सालों लग जाएंगे। चीन के साथ अचानक से पहले जैसा व्यवहार होने की आप उम्मीद नहीं कर सकते। 

चीन पर सेना प्रमुख को नहीं है भरोसा

चीन पर भरोसे को लेकर सेना प्रमुख भी चिंता जता चुके हैं। सेना प्रमुख दो बार यह बात कह चुके हैं। हाल ही में 22 अक्तूबर को सेना प्रमुख ने कहा था कि हम अप्रैल 2020 की यथास्थिति पर वापस जाना चाहते हैं। उन्होंने बताया कि एक बार जब यथास्थिति बन जाती है, तो पीछे हटने और तनाव कम करने के लिए आगे कदम उठाए जा सकते हैं।

उन्होंने कहा कि हम एक-दूसरे को यह समझाने में सक्षम हैं कि जो मौजूदा बफर जोन बनाए गए हैं, उनमें घुसपैठ न हो। हालांकि संकेतों में ही उन्होंने चीन का नाम लिए बगैर यह बताने की कोशिश की है कि घुसपैठ भारत की तरफ से न हो कर, चीन की तरफ से की जाती है। जैसा कि गलवां और दूसरी जगहों पर हुआ था।  

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