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मेवाड़ राजघराना: सड़कों पर आई महाराणा प्रताप के घराने की लड़ाई, मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप के बाद हुई सुलाह

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संपत्ति विवाद के चलते महाराणा प्रताप के घराने की लड़ाई सड़क तक पहुंच गई है। आपसी मतभेद इतना बढ़ गया कि मेवाड़ राजधराने के दोनों पक्षों की ओर से पथराव तक होने लगा। मामले की गंभीरता को देखते हुए राजस्थान के मुख्यमंत्री ने इस मामले में हस्तक्षेप कर मामला शांत किया।

जानकारी के अनुसार पूर्व राजपरिवार में विवाद कथित तौर पर भाजपा विधायक विश्वराज सिंह मेवाड़ के मेवाड़ के 77वें महाराणा के रूप में राज्याभिषेक के बाद शुरू हुआ। बाद में विवाद इतना बढ़ गया कि दोनों ही पक्षों की तरफ से पथराव तक की स्थिति पैदा हो गई थी।  

यहां हम आपको बताते हैं कि मेवाड़ राजघराना क्या है? महाराणा प्रताप से इसका क्या संबंध है? वर्तमान में विवाद किसके बीच चल रहा है?

सबसे प्राचीन है मेवाड़ राजघराना 

विश्व में सबसे प्राचीन राजवंश में मेवाड़ घराने को माना जाता है। मेवाड़ के प्रसिद्ध विरासत की जिम्मेदारी निभाने वालों में बप्पा रावल, महाराणा प्रताप और महाराणा सांगा जैसे शूरवीर शामिल हैं। बता दें संपत्ति विवाद के कारण चर्चा में आया मेवाड़ कभी एक स्वतंत्र राज्य हुआ करता था।

मेवाड़ राजपूताना क्षेत्र में मौजूद था और बाद में मध्यकालीन भारत में एक प्रमुख शक्ति बन गया। गुहिल राजवंश द्वारा राज्य की स्थापना शुरू की गई थी और उसके बाद सिसोदिया राजवंश ने शासन किया था। 19वीं शताब्दी में रियासत बनने के बाद यह राज्य उदयपुर राज्य के रूप में जाना जाने लगा।

बॉब रूपानी द्वारा लिखी किताब ‘द हाउस ऑफ मेवाड़’ के अनुसार मेवाड़ राज्य की स्थापना 568 ईस्वी में हुई थी। इस राजवंश की उत्पत्ति सूर्य देवता से मानी जाती है। वहीं छठी शताब्दी में महाराणा की पदवी अस्तित्व में आई। आठवीं शताब्दी में बप्पा रावल के गुरु ने राज्य के शासन के प्रमुख नियम निर्धारित किए।

बप्पा रावल मेवाड़ के संस्थापक पिताओं में से एक थे। आठवीं शताब्दी में ट्रस्टीशिप के रूप में राजा की अवधारणा का जन्म हुआ। जिसका मतलब है कि शासक मेवाड़ राज्य का प्रशासन ‘दीवान’ (प्रधानमंत्री) के रूप में करेगा, न कि ‘राजा’ के रूप में। इसके कारण मेवाड़ राजपरिवार के उत्तराधिकारी प्रमुखों ने हमेशा भगवान शिव के एक स्वरूप श्री एकलिंगनाथ जी के ट्रस्टी के रूप में पवित्र पद को पूरा किया है, जिन्हें मेवाड़ का शाश्वत शासक माना जाता है।

पुस्तक में मेवाड़ घराने से जुड़े कई दिलचस्प तथ्य दिए गए हैं। भारत की अधिकांश रियासतों के प्रमुखों को महाराजा कहा जाता था। लेकिन मेवाड़ जैसे कुछ राज्यों के शासकों को महाराणा के रूप में संबोधित किया जाता है। 

क्या है मेवाड़ राजघराने की वंशावली?

इतिहास के अनुसार बप्पा रावल का नाम मेवाड़ राजघराने के प्रमुख राजाओं किया जाता हैं। उन्होंने 728 ईस्वी से 764 ईस्वी तक मेवाड़ राज्य पर राज किया। उन्हें गुहिल राजपूत वंश का संस्थापक माना जाता है। बप्पा रावल को भारत पर अरबों के आक्रमण को विफल करने का श्रेय दिया जाता है। 

इसके बाद अन्य प्रमुख नाम महाराणा कुंभा का है जिनके शासनकाल के दौरान ही मेवाड़ उत्तरी भारत की सबसे शक्तिशाली राजनीतिक शक्तियों में से एक बना था। भारत में उन्हें अपने समय का सबसे शक्तिशाली शासक माना जाता है। उन्होंने 1433 से 1468 तक इस राज्य को संभाला।

मेवाड़ राजघराने से जुड़ा एक विख्यात नाम महाराणा प्रताप है। उनका जन्म महाराणा उदयसिंह एवं माता रानी जयवन्ताबाई के घर हुआ था। उन्होंने 1572 से 1597 में तक इस राज्य की गद्दी संभाली। वे ऐसे शासक रहे जिन्होंने मुगल शासन के आगे कभी घुटने नहीं टेके और इसके लिए वे आज भी देश के सबसे प्रसिद्ध शासक हैं।

स्वतंत्रता के बाद मेवाड़ राजघराने का क्या हुआ?

1597 में महाराणा प्रताप की मृत्यु के बाद कई राजाओं में मेवाड़ की शाही विरासत को आगे बढ़ाया। आधुनिक समय में मेवाड़ राजघराने को देखें तो आजादी से पहले महाराज कुमार भूपाल ने इसकी गद्दी संभाली थी। महाराज कुमार भूपाल सिंह 1930 में मेवाड़ की गद्दी पर बैठे।

वहीं ब्रिटिश साम्राज्य से स्वतंत्रता के बाद महाराणा भूपाल सिंह ने 18 अप्रैल 1948 को तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की उपस्थिति में द दरबार हॉल, फतेह प्रकाश पैलेस, उदयपुर में आयोजित एक समारोह में अपने राज्य को राजस्थान संघ में विलय कर दिया।

इसके बाद महाराणा को राजस्थान का महाराज प्रमुख नियुक्त किया गया। महाराज कुमार भूपाल सिंह की विरासत को बढ़ाने का काम भगवत सिंह मेवाड़ ने किया। कुमार भूपाल सिंह और उनकी पत्नी ने भगवत सिंह को गोद लिया था। 

महाराणा भूपाल सिंह के निधन के बाद महाराणा कुमार भगवत सिंह 4 जुलाई 1955 ई. को मेवाड़ की गद्दी पर बैठे। वह 1955 से लेकर 1971 तक मेवाड़ के नाममात्र शासक रहे। 1971 में भारत सरकार ने एक संविधान संशोधन करके सभी शाही उपाधियों को समाप्त कर दिया। इस तरह से भगवत सिंह मेवाड़ राजघराने के आखिरी महाराणा थे। 

1971 में रियासतों के विशेषाधिकारों के खत्म होने के साथ संरक्षक के पद के लिए दोबारा बनाने की आवश्यकता पड़ी। अब भगवत सिंह के दो बेटे अरविंद और उनके बड़े भाई महेंद्र दोनों ही मेवाड़ के 76वें संरक्षक होने का दावा करते हैं। उनकी एक बहन योगेश्वरी हैं।

वर्तमान में विवाद किसके बीच है?

पूर्व शाही परिवार के सदस्यों के बीच पिछले कुछ दशक से संपत्ति का विवाद चल रहा है। मंदिरों, किलों और महलों सहित शाही संपत्तियों के नियंत्रण को लेकर कानूनी विवाद वर्षों से चल रहा है और अब अधिकांश परिसंपत्तियों का प्रबंधन ट्रस्टों के पास है। 1984 में मेवाड़ के पूर्व महाराणा भगवत सिंहजी ने अपने बड़े बेटे महेंद्र सिंह मेवाड़ को दरकिनार करते हुए अपने छोटे बेटे अरविंद सिंह को शाही संपत्तियों के प्रबंधन वाले ट्रस्ट का निदेशक बना दिया।

महेंद्र सिंह मेवाड़ की मृत्यु के बाद सदियों पुराने राज तिलक समारोह में विश्वराज सिंह को नए महाराणा के रूप में अभिषेक किया गया। परंपरा के अनुसार, विश्वराज ने सिटी पैलेस के अंदर धूनी माता मंदिर और उदयपुर के पास एकलिंग शिव मंदिर में अपने परिवार के देवताओं के दर्शन करने की इच्छा जताई।

हालांकि, ये मंदिर महाराणा मेवाड़ चैरिटेबल ट्रस्ट के नियंत्रण में हैं, जिसका नेतृत्व उनके चाचा और चचेरे भाई करते हैं। विवाद के कारण उन्हें प्रवेश से वंचित कर दिया गया। विश्वराज सिंह भाजपा नेता और नाथद्वारा से विधायक हैं, जबकि उनकी पत्नी महिमा कुमारी राजसमंद से भाजपा की सांसद हैं।

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