केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने शिक्षा के अधिकार नियम 2010 में संशोधन नो-डिटेंशन नीति को खत्म कर दिया है। जिसके अनुसार राज्यों को कक्षा 5वीं और 8वीं के छात्रों के लिए नियमित परीक्षा आयोजित करने की अनुमति दी गई है, साथ ही अगर छात्र फेल हो जाते हैं तो उन्हें रोकने का विकल्प भी दिया गया है। यह संशोधन आरटीए अधिनियम में 2019 के संशोधन के पांच साल बाद आया है, जिसमें “नो-डिटेंशन” नीति को खत्म कर दिया गया था।
क्या है नो-डिटेंशन नीति?
जानकारी के अनुसार स्कूली शिक्षा में एक बड़ा बदलाव करते हुए केंद्र सरकार ने अपने द्वारा शासित स्कूलों में कक्षा 5वीं और 8वीं के लिए ‘नो-डिटेंशन पॉलिसी’ को खत्म कर दिया है, जो उन छात्रों को फेल करने की अनुमति देती है जो साल के अंत की परीक्षाओं में उत्तीर्ण नहीं हो पाते हैं।
बता दें 2019 में शिक्षा का अधिकार अधिनियम में संशोधन के बाद, कम से कम 16 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों ने पहले ही दोनों कक्षाओं के लिए नो-डिटेंशन पॉलिसी’ को खत्म कर दिया है।
फेल छात्र को पुन: दिया जाएगा अवसर
एक गजट अधिसूचना के अनुसार नियमित परीक्षा के आयोजन के बाद यदि कोई बच्चा समय-समय पर अधिसूचित पदोन्नति मानदंडों को पूरा करने में विफल रहता है, तो उसे दो महीने की अवधि के भीतर अतिरिक्त निर्देश और पुन: परीक्षा का अवसर दिया जाएगा।
अधिसूचना में कहा गया है कि यदि पुन: परीक्षा में बैठने वाला बच्चा फिर से पदोन्नति के मानदंडों को पूरा करने में विफल रहता है, तो उसे पांचवीं कक्षा या आठवीं कक्षा में रोक दिया जाएगा। बच्चे को रोके रखने के दौरान, कक्षा शिक्षक बच्चे के साथ-साथ यदि आवश्यक हो तो बच्चे के माता-पिता का मार्गदर्शन करेगा और मूल्यांकन के विभिन्न चरणों में सीखने के अंतराल की पहचान करने के बाद विशेष जानकारी प्रदान करेगा।
फेल होने पर स्कूल से नहीं निकाला जाएगा
हालांकि, सरकार ने स्पष्ट किया है कि प्रारंभिक शिक्षा पूरी होने तक किसी भी बच्चे को किसी भी स्कूल से नहीं निकाला जाएगा।
शिक्षा मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार, अधिसूचना केंद्रीय विद्यालयों, नवोदय विद्यालयों और सैनिक स्कूलों सहित केंद्र सरकार द्वारा संचालित 3,000 से अधिक स्कूलों पर लागू होगी।
चूंकि स्कूली शिक्षा एक राज्य का विषय है, इसलिए राज्य इस संबंध में अपना निर्णय ले सकते हैं। दिल्ली सहित 16 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों ने पहले ही इन दो कक्षाओं के लिए नो-डिटेंशन पॉलिसी को खत्म कर दिया है।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि हरियाणा और पुडुचेरी ने अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया है, जबकि शेष राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने नीति को जारी रखने का फैसला किया है।