उपचुनाव की घोषणा के बाद एक बार फिर से पूरे देश में चुनावी माहौल बन गया है। जैसे जैसे चुनाव के दिन नजदीक आते जा रहे हैं वैसे वैसे कांग्रेस की गठबंधन से दूरी बनती जा रही है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के पीछे हटने के कई कारण देखे जा रहे हैं। बात अगर उत्तर प्रदेश की करें तो कांग्रेस की गठबंधन से दूरी की प्रमुख वजह गठबंधन धर्म का पालन न होना और सपा की कृपा पात्र बनकर रह जाना है।
बता दें अंतिम समय पर सपा की ओर से फूलपुर सीट छोड़ने की बात को कांग्रेस ने खुद के लिए मुफीद नहीं माना। क्योंकि फूलपुर में सपा उम्मीदवार मुज्तबा सिद्दकी का टिकट काटकर सुरेश यादव को मैदान में उतारने का कांग्रेस को दीर्धकालीन खामियाजा भुगतना पड़ता। ऐसे में कांग्रेस ने बीच का रास्ता अपनाया। लोकसभा चुनाव के दौरान गठबंधन में कई दिनों तक मशक्कत करने वाली कांग्रेस इस बार सतर्क थी। कांग्रेस पार्टी की ओर से उपचुनाव का बिगुल बजने से पहले ही पांच सीटों गाजियाबाद, मझवां, फूलपुर, मीरापुर और खैर पर दावा किया था।
गौरतलब हो कि यह पांचों ही सीटें भाजपा के खाते की थीं। सूत्रों की मानें तो सपा ने गठबंधन धर्म के तहत बिना बातचीत किए उम्मीदवार घोषित कर दिया। सपा ने सियासी समीकरण को देखते हुए कांग्रेस के लिए गाजियाबाद और खैर सीट छोड़ने का एलान कर दिया। इन दोनों सीटों पर एक तरफ सियासी समीकरण अनुकूल नहीं थे तो दूसरी तरफ दो सीटें छोड़ने की बात के प्रस्तुतिकरण का तरीका भी कांग्रेस को नागवार लगा।
नहीं देना चाहती ये संदेश
माना जा रहा है कि गठबंधन के मुद्दे पर खुलकर बात नहीं होने को भी कांग्रेस ने खुद के सम्मान से जोड़ा। नामांकन के दो दिन पहले फूलपुर छोड़ने की बात कही गई। इसे कांग्रेस ने सही नहीं माना। क्योंकि फूलपुर से सपा ने पहले ही मुज्तबा सिद्दकी को उम्मीदवार घोषित कर रखा था। अगले दिन उन्होंने नामांकन भी कर दिया। कांग्रेस यहां से जिलाध्यक्ष सुरेश यादव को मैदान में उतारना चाहती थी।
ऐसे में घोषणा के बाद मुज्तबा सिद्दकी का टिकट कटता तो अल्संख्यकों के बीच पूरे देश में कांग्रेस के खिलाफ संदेश जाता। यह संदेश सपा के लिए मुफीद था, लेकिन कांग्रेस के लिए घातक। क्योंकि कांग्रेस पूरे देश में अल्पसंख्यकों की हितैषी होने का ढिंढोरा पीट रही है। ऐसे में वह अल्पसंख्यक का टिकट काटने का कलंक अपने माथे पर नहीं लेना चाहती थी। ऐसे में उसके पास मैदान से हटने के अतिरिक्त कोई दूसरा विकल्प नहीं दिखा।
गठबंधन में पड़ने लगी है दरार
गठबंधन की स्थिति का अनुमान इस बात से ही लगाया जा सकता है कि दोनों दलों ने संयुक्त रूप से एकसाथ घोषणा नहीं की। पहले सपा ने ऐलान किया कि वह सभी सीटों पर कांग्रेस के सहयोग से चुनाव लड़ेगी। अगले दिन कांग्रेस ने सहयोग देने का घोषणा की।
यह भी साफ किया कि कांग्रेस का कोई भी उम्मीदवार मैदान में नहीं उतरेगा। यही वजह है कि जब फूलपुर से कांग्रेस जिलाध्यक्ष सुरेश यादव ने नामांकन किया तो उन्हें पार्टी ने पद से हटा दिया। सुरेश यादव का नामांकन इस बात का सबूत है कि कांग्रेस के अंदरखाने में गठबंधन को लेकर चिंगारी सुलग रही है।
हालांकि इस मुद्दे पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय कहते हैं कि सीट बंटवारे का मुद्दा खत्म हो गया है। अब भाजपा को हराने के मुद्दे पर बात होनी चाहिए। जनता की भलाई और देश- प्रदेश में अमन चैन कायम करने के लिए भाजपा को हटाना जरूरी है। गठबंधन के तहत सभी नौ सीटों पर उतारे गए उम्मीदवारों के साथ पार्टी का हर नेता और कार्यकर्ता पूरी शिद्दत से लगा हुआ है।
गठबंधन पर महाराष्ट्र में भी चल रही है रार
बता दें की रविवार को सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने एक कार्यक्रम में कहा कि हम लोग इग्नोर होने वाले लोग हैं। राजनीति में त्याग की कोई जगह नहीं है। महाराष्ट्र चुनाव के संबंध में दिए गए इस बयान को कांग्रेस के साथ गठबंधन से भी जोड़कर देखा जा रहा है। क्योंकि सपा महाराष्ट्र में चार उम्मीदवार उतार चुकी है और वह गठबंधन के तहत 12 सीटें मांग रही है। जबकि कांग्रेस अपने कोटे की सीटें देने को तैयार नहीं है। इसके पहले समाजवादी पार्टी ने जम्मू- कश्मीर में उम्मीदवार उतारे और पराजय का सामना करना पड़ा। हरियाणा में भी सीटों के लिए जोरआजमाइश हुई। सपा ने पांच सीटें मांगी, लेकिन कांग्रेस ने सीटें नहीं दीं थी।
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