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आतिशी को सीएम बना केजरीवाल ने एक तीर से साधे कई निशाने, समझिए रणनीति

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नई दिल्ली। अरविंद केजरीवाल हमेशा से परिवारवाद के खिलाफ रहे हैं। कांग्रेस को भी वह इसी मुद्दे पर कई बार घेर चुके हैं। अपनी छवि अच्छी बनाने के लिए अरविंद केजरीवाल ने अपनी पार्टी की महिला विधायक आतिशी को दिल्ली का नया सीएम बनाने का निर्णय लिया है।

हालांकि कयास लगाए जा रहे थे कि हो सकता है अरविंद केजरीवाल अपनी पत्नी सुनीता केजरीवाल को भी मुख्यमंत्री बना सकते हैं। लेकिन उन्होंने अपना विश्वास आतिशी पर दिखाया है। राजनीति के जानकारों का मानना है कि ऐसा करके अरविंद केजरीवाल ने एक साथ अपने कई हित साध लिए हैं। आईए जानते है कि आखिर अरविंद केजरीवाल ने आतिशी को ही मुख्यमंत्री क्यो बनाया है?

केजरीवाल को क्यों जंची आतिशी?

कहा जा रहा है कि अरविंद केजरीवाल जिस संकल्प के साथ जेल से बाहर आए उस संकल्प की जरूरत को आतिशी पूरा करती दिख रही थी। दिल्ली विधानसभा के चुनाव 2025 में होने की संभावना है ऐसे में अरविंद केजरीवाल के सामने पहली चुनौती जनता में उनकी ईमानदार छवि है।

इसके लिए उन्हें जनता से ईमानदारी का प्रमाणपत्र लेना होगा। इस काम को आतिशी बखूबी निभा सकती हैं। साथ ही उन्होंने ऐसा करके जनता के बीच परिवारवाद के खिलाफ अपना नजरिया साफ कर दिया है जिससे जनता में उनके प्रति विश्वास बढ़ा है।

इसके अतिरिक्त आतिशी को मुख्यमंत्री बनाने के पीछे महत्वपूर्ण कारण यह भी था कि बतौर मंत्री आतिशी सबसे ज्यादा विभाग देख रही थीं। इसलिए सरकार चलाने में आम आदमी पार्टी की नीति के तहत आतिशी सबसे ज्यादा उपयुक्त समझी गईं।

केजरीवाल ने दिखाई अपनी दूरदृष्टि

जानकारों की माने तो अरविंद केजरीवाल ने आतिशी को सीएम बना कर लंबी राजनीति वाली पारी खेली है। क्योकि 2025 में दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने हैं। इस बीच राजनीति की शुचिता का ख्याल रखते हुए आम आदमी की तरह केजरीवाल दिल्ली की जनता के बीच कुछ सवालों के साथ जाएंगे।

इनमें सबसे प्रमुख सवाल होगा कि यदि मैं ईमानदार हूं तो मुझे वोट दीजिए। मुझ पर जो आरोप लगे हैं उनमें यदि वह सच्चाई पाते हैं तो मुझे वोट मत दीजिएगा। कहा जा रहा है कि चुनाव से पहले अरविंद केजरीवाल ने अपने चित परिचित अंदाज में अपना चुनाव प्रचार शुरू कर दिया है।

आगामी चुनाव को देखते हुए अरविंद केजरीवाल का मकसद अपने नेतृत्व को मजबूत करना और पार्टी के चेहरे को दागदार करने की जो कोशिश हुई है उसके विरुद्ध और भी निखर कर, मजबूत हो कर आगामी चुनावी जंग में उतरना है।

परिवारवाद से ली सीख

जानकारों का कहना है कि दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी को सीएम बनाने के पहले अरविंद केजरीवाल के पास परिवारवाद के उदाहरण भी थे। लेकिन परिवारवाद की राजनीति का तुरंत तो फायदा होते दिखता है लेकिन इसके दूरगामी नुकसान होते है।

लालू प्रसाद यादव ने जेल जाने के पहले अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री तो बनाया पर धीरे-धीरे जनता का विश्वास खत्म होता गया। अगर राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का साथ नहीं मिलता तो लालू प्रसाद यादव के पुत्र तेजस्वी यादव उप मुख्यमंत्री भी नही बनते।

नीतीश और जीतन राम मांझी

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में हार का जिम्मा लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस्तीफा दिया और दलित नेता जीतन राम मांझी को बिहार का मुख्यमंत्री बनाया। नीतीश कुमार के इस फैसले की राजनीतिक जगत में काफी चर्चा हुई। दलितों में नीतीश कुमार की पैठ बनी।

तमाम करीबी सवर्ण और पिछड़ी जाति के मंत्री के रहते जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बना कर एक मिसाल पेश करने वाले मुख्यमंत्री बने। और जब मुख्यमंत्री के रूप में जीतन राम मांझी ने लीक से हटकर अपनी राजनीति शुरू की तो पार्टी के भीतर ही अपना प्रभुत्व खो दिया और अंततः मुख्यमंत्री फिर नीतीश कुमार ही बने।

चंपाई सोरेन और हेमंत सोरेन मामले से ली सीख

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने जिस प्रकार से अपनी पत्नी कल्पना सोरेन को दरकिनार कर पार्टी के वरिष्ठ नेता चंपाई सोरेन को सीएम बनाया, उसकी चर्चा भी देश की राजनीति में हुई। चंपाई सोरेन ने काफी अच्छा काम भी किया पर जेल से निकलने के बाद हेमंत सोरेन ने जब फिर जिम्मेदारी लेने लगे तो नाराज चंपाई सोरेन ने पार्टी छोड़ दी। इसके बाद चंपाई सोरेन के साथ एक भी विधायक नहीं आए। हेमंत सोरेन फिर से और मजबूत मुख्यमंत्री बने।

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