Ganesh Chaturthi

Ganesh Chaturthi 2024: गणेश चतुर्थी के लिए मिलेंगे 2 घंटे 31 मिनट, जानिए शुभ मुहूर्त

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हिन्दू धर्म में गणेश चतुर्थी का विशेष महत्व है। यह पर्व पूवे 10 दिनों तक बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी का त्योहार प्रत्येक वर्ष भाद्रपद माह के शुक्लपक्ष की चतुर्थी से शुरू होता है। इस दौरान भगवान गणेश की विधिवत पूजा की जाती है। यह पर्व चतुर्थी से शुरू कर अनंत चतुर्दशी पर समाप्त होता है।

मेरठ निवासी पंडित पियूश अवतार शर्मा ने बताया कि इस समय लोग अपने घर में बप्पा की मूर्ति स्थापित करते हैं और उनकी सच्चे मन से पूजा और भक्ति करते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल भाद्रपद माह के शुक्लपक्ष की चतुर्थी की शुरुआत छह सितंबर को दोपहर तीन बजकर एक मिनट पर शुरू हो गई है। वहीं इस तिथि का समापन सात सितंबर को शाम 5 बजकर 37 मिनट पर होगा। उन्होंने बताया कि उदय तिथि के अनुसार गणेश चतुर्थी का पर्व सात सितंबर को मनाया जाएगा।

पंडित पियूष अवतार शर्मा ने बताया कि गणेश जी की स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 11 बजकर 3 मिनट से लेकर दोपहर के 1 बजकर 34 मिनट तक रहेगा। इस दिन पूजा के लिए आपको पूरे 2 घंटे 31 मिनट का समय मिलेगा। इस साल अनंत चतुर्दशी का त्योहार 17 सितंबर 2024 को मनाई जाएगी। इस दिन बप्पा की विदाई की जाती है।

उन्होंने बताया कि शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से साधक को शुभ फल की प्राप्ति होती है। साथ ही गणेश चतुर्थी का व्रत रखने से और गणेश जी की 10 दिन पूजा करने से सारे विघ्नों का नाश हो जाता है। इसके साथ ही साधक की सारी मनोकामना पूरी होती है।

उन्होंने बताया कि पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान श्री गणेश को देवी पार्वती ने अपने शरीर के मैल से बनाया था। फिर माता ने उनमें प्राण फूंक दिए थे। भगवान श्री गणेश को ज्ञान, बुद्धि और शिक्षा के देवता के रूप में पूजा जाता है। भक्त अपने प्रयासों, शिक्षा और नई शुरुआत में सफलता के लिए उनका आशीर्वाद मांगते हैं।

भगवान श्री गणेश के सामने फलाहार व्रत का संकल्प लें। शुभ मुहूर्त में पूजा की चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर गणपति को स्थापित करें। भगवान को गंगाजल से स्नान करवाएं, सिंदूर, चंदन का तिलक लगाएं, पीले फूलों की माला अर्पित करें। मोदक का भोग लगाएं, देसी घी का दीपक जलाएं और गणेशजी के मंत्रों का जाप करें।

आरती के बाद प्रसाद बांट दें। शाम को गणेशजी की आरती करें और फिर भोग लगाएं। इसके बाद ही व्रत का पारण करें।

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