मलमास या अधिकमास के कारण इस वर्ष रक्षाबंधन सहित कई त्योहार देरी से होंगे। 16 अगस्त को अधिकमास समाप्त हो जाएगा। इसके बाद व्रत और त्योहार शुरू हो जाएंगे। इस वर्ष मलमास के समाप्त होने के बाद सबसे पहला त्योहार नाग पंचमी और उसके बाद रक्षाबंधन का त्योहार आएगा। रक्षाबंधन का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है।
भाई बहन के प्रेम का यह त्योहार पूरे भारत में धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। इस वर्ष रक्षाबंधन का पर्व दो दिन पड़ रहा है। वहीं रक्षाबंधन पर भद्रा का साया है। ऐसे में लोगों में राखी बंधने के समय को लेकर भ्रम बना हुआ है। रक्षाबंधन में बहने अपने भाईयों की कलाई में राखी बांधकर सुख समृद्धि और लंबी आयु की प्रार्थना करती हैं वहीं भाई अपनी बहन की रक्षा करने का प्रण लेते हैं।
कब है रक्षाबंधन
ज्योतिषाचार्य डॉ. पियूश अवतार शर्मा के अनुसार रक्षाबंधन का त्योहार श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। वर्ष 2023 को श्रावण मास की पूर्णिमा 30 और 31 अगस्त को पड़ रही है। इस वर्ष पूर्णिमा तिथि पर भद्रा का साया भी है। शास्त्रों के अनुसार रक्षाबंधन का त्योहार भद्रा के साय में नहीं मनाया जाता है। शास्त्रों में भद्रा काल को बहुत ही अशुभ समय माना जाता है। मान्यता है कि इस समय में किसी भी प्रकार का शुभ कार्य नहीं किया जाता है। इसी कारण से भद्रा काल में भाइयों की कलाई में राखी बांधना वर्जित होता है।
डॉ. पियूश अवतार शर्मा ने बताया कि वैदिक पंचांग के अनुसार वर्ष 2023 में श्रावण माह की पूर्णिमा तिथि प्रात: 11 बजे से शुरू हो जाएगी जबकि इसका समापन 31 अगस्त को सुबह 7 बजकर 7 मिनट पर होगा। पूर्णिमा तिथि दो दिन होने के कारण इस वर्ष रक्षाबंधन का पर्व भी दो दिन मनाया जाएगा। किन्तु भद्रा का साया पड़ने के कारण लोगों में राखी बंधने के समय को लेकर मतभेद है।
क्या होती है भद्रा?
तांत्रिक और ज्योतिषाचार्य अमोद शर्मा ने बताया शास्त्रों के अनुसार भद्रा भगवान सूर्य व माता छाया की पुत्री और शनिदेव की बहन हैं। ग्रंथों के अनुसार भद्रा का जन्म दैत्यों के विनाश के लिए हुआ था। कहा जाता है कि जब भद्रा का जन्म हुआ तो पैदा होने के तुरंत बाद ही वह संपूर्ण सृष्टि को ही अपना निवाला बनाने लगी थी।
तब से भद्रा काल में जहां भी शुभ और मांगलिक कार्य हो रहे होते है वहां विध्न आने लगता है। इसी कारण से भद्रा काल में किसी भी प्रकार का शुभ कार्य नहीं किया जाता है। भद्रा को 11 कारणों में से 7वें कारण अर्थात विष्टि करण में स्थान प्राप्त है।
अमोद शर्मा ने बताया कि शास्त्रों के अनुसार भद्रा का वास तीनों लोकों में होता है। अर्थात भद्रा स्वर्ग लोक, भू लोक और पाताल लोक तीनों लोकों में वास करती हैं। वैदिक पंचांग के अनुसार जब चन्द्रमा कर्क, सिंह, कुम्भ या मीन राशि में होता है तब भद्रा का वास पृथ्वी लोक पर होता है। पृथ्वी लोक पर भद्रा का मुख सामने की ओर होता है।
इस कारण से भद्रा काल में किसी भी प्रकार का शुभ या मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है। मान्यता है कि भद्रा काल में किया गया कोई भी शुभ कार्य कभी सफल नहीं होता है। रावण की बहन ने भद्रा काल में ही रावण के राखी बांधी थी इसी कारण रावण का भगवान राम के हाथों अंत हुआ।
कब से कब तक रहेगा भद्रा का साया?
अमोद शर्मा ने बताया कि रक्षा बंधन के पावन अवसर पर भद्रा का साया रहने से लोगों में राखी बांधने के समय को लेकर भ्रम है। वैदिक पंजांग के अनुसार भद्रा 30 अगस्त को सुबह 10 बजकर 58 मिनट से लगेगी, जो रात 9 बजकर 1 मिनट पर समाप्त होगी। इस वर्ष रक्षाबंधन के अवसर पर भद्रा पृथ्वी पर वास करेंगी इसी कारण ज्योतिषाचार्य लोगों से भद्रा काल में राखी बंधने के लिए मना कर रहे हैं।
वहीं दूसरी तरफ श्रावण पूर्णिमा 30 अगस्त को 11 बजे से शुरू होकर 31 अगस्त को सुबह 7 बजकर 7 मिनट तक रहेगी। ऐसे में 30 अगस्त को सुबह भद्रा लगने से पहले और 31 अगस्त को सुबह 7 बजकर 7 मिनट से पहले राखी बांधी जा सकती है।
राखी बांधने का शुभ मुहूर्त
डॉ. पियूश अवतार शर्मा ने बताया कि शास्त्रों के अनुसार रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को दोपहर के समय भद्रा रहित काल में माना जाता है। किंतु इस वर्ष 30 अगस्त को पूरे दिन भद्रा रहेगी। ऐसे में 30 अगस्त 2023 को रात 9 बजकर 3 मिनट के बाद और 31 अगस्त को सुबह 7 बजकर 7 मिनट से पहले राखी बांधी जा सकती है।