अयोध्या और राम का नाम हमेशा से आपस में जुड़ा हुआ है। राम मंदिर को लेकर सनातनियों के हृदय में अलग ही स्थान है। अयोध्या सदियों से विवादों और परिवर्तनों की मार झेलता रहा है। वर्तमान में यह मंदिर आस्था, विश्वास और राष्ट्रीय चेतना का प्रतीक बनकर उभरा है।
ग्रंथों में इस स्थान का वर्णन 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व तक में पाया जाता है। विभिन्न पुरातात्विक खोजों में छोटे स्तंभों, मूर्तियों और सिक्कों के अवशेषों से भी यह सिद्ध हो चुका है कि पुराने समय में भी अयोध्या एक महत्वपूर्ण धार्मिक केन्द्र रहा है।
किसने बसाई थी अयोध्या
ग्रंथों के अनुसार अवध नगरी अयोध्या को श्री राम के पूर्वज विवस्वान (सूर्य) के पुत्र वैवस्वत मनु ने बसाया था। वैवस्वत मनु सूर्य के पुत्र होने के कारण उनको सूर्यवंशी कहा जाता है। ग्रंथों के अनुसार महाभारत काल तक अयोध्या में सूर्यवंशी राजाओं का शासन रहा।
महर्षि वाल्मीकि ने अपनी रामायण में अयोध्या नगरी को धन्य-धान्य, रत्न-आभूषणों से भरी इस नगरी की अतुलनीय छटा और खूबसूरत इमारतों का वर्णन करते हुए अयोध्या की तुलना इंद्रलोक की है।
अयोध्या ने देखे हैं कई उतार-चढ़ाव
विभिन्न ग्रंथों के अनुसार अयोध्या नगरी ने अब तक कई उतार चढ़ाव देखे हैं। भगवान श्री राम के शासन काल को अब तक का सबसे अच्छा शासन काल कहा जाता है। किन्तु श्री राम के जल समाधि लेने के बाद अयोध्या कुछ समय के लिए उजाड़ हो गई थी।
श्री राम के पुत्र कुश ने फिर से अयोध्या का पुनर्निर्माण कराया और इसके बाद सूर्यवंश की 44 पीढ़ियों तक इसका अस्तित्व चरम पर रहा। इसके बाद महाभारत काल में हुए युद्ध के बाद एक बार फिर से अयोध्या उजाड़ हो गई.
विभिन्न पौराणिक कथाओं और ग्रंथों में अयोध्या के उजडने और बसने का वर्णन मिलता है। लेकिन श्री राम जन्म भूमि पर बने श्री राम के मंदिर को एक दो बार नहीं बल्कि कई बार आक्रमणों का सामना करना पड़ा।
मुगलकाल के दौरान कई बार राम मंदिर को तोड़ा गया और कई बार इसे बनाया गया। मुगलकाल के दौरान अयोध्या नगरी को नष्ट करने के लिए कई बार अभियान भी चलाए गए। इसी अभियान के क्रम में राम मंदिर में बाबरी ढांचा बनाया गया और बाद में भव्य मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनवाया गया।
विभिन्न हमलों और तोड़ फोड़ बाद भी अयोध्या नगरी कभी नष्ट नहीं हो सकी। वैसे तो अयोध्या नगरी का इतिहास त्रेतायुग से भी पुराना है, यहां हम अयोध्या नगरी के विध्वंस से लेकर पुन: निर्माण तक की 500 साल पुराने इतिहास की प्रमुख घटनाओं के जानकारी दे रहे हैं।
अयोध्या में श्रीराम जन्म भूमि का इतिहास (Ram Mandir History)
अवध नगरी अयोध्या को श्री राम के पूर्वज सूर्य के पुत्र वैवस्वत मनु ने बसाया था। अयोध्या राम जन्म भूमि देश के सबसे लंबे चलने वाले केस में एक है। राम जन्मभूमि का इतिहास बहुत पुराना है. वर्ष 1528 से लेकर 2023 तक इन 495 वर्षों में श्रीराम जन्म भूमि में कई मोड़ आए।
किन्तु 9 नवंबर 2019 का दिन इस मामले में बेहद खास रहा, जब 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने हिन्दुओं के पक्ष में ऐतिहासिक फैसला सुनाया.
राम जन्म भूमि से जुड़ी प्रमुख घटनाएं
- 1528: इतिहास के जानकारों और हिन्दू पक्ष के अनुसार मुगल बादशाह बाबर के आदेश पर उनके सिपहसालार मीर बाकी ने भगवान राम की जन्मभूमि पर बने मंदिर को तोड़कर वहां पर मस्जिद का निर्माण कराया गया। हिन्दू पक्ष के लोगों का मानना है कि मस्जिद में बने तीन गुंबदों में से एक गुंबद के नीचे ही भगवान राम का जन्मस्थन है।
- 1853-1859: बाबरी मस्जिद बनने के बाद पहला दंगा 1853 में हुआ था। उस समय हिन्दू पक्ष के लोग भगवान श्री राम के जन्म स्थान पर पूजा करने की मांग कर रहे थे। लगातार बढ़ रहे तनाव को देखते हुए 1859 में अंग्रेजों ने विवादित स्थान के पास बाड़ लगा दी और मुसलमानों को ढ़ाचे के अंदर और हिन्दुओं को मस्जिद के बाहर चबूतरे के पास पूजा करने की इजाजत दे दी थी।
- 1949: अयोध्या में श्रीराम जन्म भूमि का असली विवाद 23 सितंबर 1949 में उस समय शुरू हुआ जब लोगों को मस्जिद के अंदर भगवान श्री राम की मूर्तियां मिली। इस घटना के बाद हिन्दू समुदाय के लोग कहने लगे कि, यहां साक्षात भगवान राम प्रकट हुए हैं। वहीं मुस्लिम समुदाय के लोगों का आरोप है कि कुछ लोगों ने चुपके से यहां मूर्तियां रख दी हैं। मामले के तूल पकड़ते देख उत्तर प्रदेश सरकार ने तुरन्त मूर्तियों को वहां से हटाने के आदेश दिए। लेकिन जिला मैजिस्ट्रेट केके नायर ने धार्मिक भावना को ठेस पहुंचने और दंगों भड़कने के डर से इस आदेश का पालन करने में असमर्थता जताई। इसके बाद से इसे विवादित ढांचा मानकर ताला लगा दिया गया।
- 1950: श्रीराम जन्म भूमि को लेकर पहली अर्जी फैजाबाद के सिविल कोर्ट में 1950 में दाखिल की गई। सिविल कोर्ट में दाखिल अर्जी में विवादित भूमि पर रामलला की पूजा करने की इजाजत और मूर्ति रखने की इजाजत मांगी गई थी।
- 1961: सुन्नी वक्फ बोर्ड ने 1961 में एक अर्जी दाखिल कर विवादित भूमि पर पजेशन देने और मूर्तियों को हटाने की मांग की गई थी।
- 1984: यूसी पांडे की याचिका पर सुनवाई करते हुए फैजाबाद के जिला जज केएम पांडे ने 1 फरवरी 1986 में ढांचे पर लगे ताले हटाने का आदेश देते हुए हिन्दुओं को पूजा करने की इजाजत दे दी।
- 1992: यह दंगा इतिहास में दर्ज है। 6 दिसंबर 1992 में विश्व हिन्दू परिषद और शिवसेना सहित कई हिन्दू संगठनों के लाखों कार्यकर्ताओं ने विवादित ढ़ांचे को गिरा दिया। विभाजन के बाद यह देश का सबसे बड़ा दंगा कहा जाता है जिसमें हजारों की संख्या में लोग मारे गए थे। इस घटना के बाद देश के विभिन्न इलाकों को कई छोटे बड़े दंगे हुए। गोधरा कांड को भी इसी से जोड़ कर देखा जाता है।
- 2010: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2010 में विवादित भूमि को सुन्नी वक्फ बोर्ड, रामलला विराजमान कमेटी और निर्मोही अखाड़ा के बीच तीन बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया।
- 2011: सुप्रीम कोर्ट ने विवादित भूमि को तीन बराबर भागों में बाटने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी।
- 2017: सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में भाजपा नेताओं को आपराधिक साजिश के आरोप से बहाल करते हुए आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट करने का आहवान किया।
- 2019: सुप्रीम कोर्ट ने 8 मार्च 2019 को मामले को मध्यस्थता के लिए भेजते हुए 8 सप्ताह के भीतर कार्यवाही खत्म करने का आदेश दिया। लेकिन मध्यस्थता पैनल समाधान निकालने में कामयाब नहीं रहा। उसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिदिन मामले की सुनवाई शुरू की। 9 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की बेंच में श्रीराम जन्म भूमि के पक्ष में फैसला सुनाते हुए 2.77 एकड़ विवादित भूमि हिन्दू पक्ष को सौपने और मुस्लिम पक्ष को मस्जिद के लिए 5 एकड़ भूमि मुहैया कराने का आदेश दिया।
- 2020: पूरे 28 वर्ष के बाद श्रीराम चन्द्र जी को टेंट से निकालकर फाइबर मंदिर में रखा गया। इसके बाद 5 अगस्त को मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन किया गया।
- 2024: एक बार फिर से श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या नगरी में श्रीराम जी का मंदिर बनकर तैयार हो गया। 22 जनवरी 2024 को मंदिर का अभिषेक होगा और श्री राम की मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा की जाएगी। प्राणप्रतिष्ठा के बाद श्रीराम का दरबार सभी के लिए खोल दिया जाएगा।