दिल्ली। अंग्रेजों के शासन काल से चले आ रहे कानून को केन्द्र सरकार पूरी तरह बदलने के मन बना लिया है। इसी क्रम में नरेन्द्र मोदी सरकार ने अपना पहला कदम बढ़ाते हुए औपनिवेशिक युग के राजद्रोह कानून (124ए) को समाप्त करने का फैसला लिया है। इस कानून को अब भारतीय न्याय संहिता की धारा 150 के साथ बदला जा रहा है। इस विधेयक के पास होने के साथ ही नरेन्द्र मोदी ने पिछले साल स्वतंत्रता दिवस पर लिए हुए अपने पांच प्रणों में से एक को पूरा करने में सफल हो गए।
बता दे कि जून में विधि आयोग ने राजद्रोह कानूनो का पूर्ण समर्थन करते किया था और कहा था कि इस कानून को परिस्थितियों से जुड़े बदलावों के साथ बरकरार रखा जाना चाहिए। रिपोर्ट में आयोग ने कहा था कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124ए को निरस्त करना भारत में मौजूद जमीनी हकीकत से मुंह मोडने के समान है। आयोग ने सुझाव देते हुए कहा था की राजद्रोह के लिए सजा को तीन साल से बढाकार आजीवन कारावास या सात साल की जेल की सजा दी जानी चाहिए।
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लोक सभा में गृह मंत्री ने क्या कहा
लोक सभा में केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को कहा कि नया विधेयक राजद्रोह के कानून को पूरी तरह से निरस्त कर देगा। उन्होंने कहा कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को बदलने के लिए तीन विधेयक पेश किए जा रहे हैं और 16 अगस्त से आजादी की 100 वर्ष की यात्रा की शुरूआत के साथ अमृतकाल का आरंभ होगा।
अमित शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले साल स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले पर पांच प्रण लिए थे जिसमें से एक प्रण गुलामी की सभी निशानियों को समाप्त करना था। लोक सभा में पेश किए गए तीन विधेयक प्रधानमंत्री के पांच प्रणों में से एक को पूरा करने वाले हैं।
इस विधेयक के बाद भारतीय दंड संहिता, 1860 के स्थान पर अब भारतीय न्याय संहिता 2023 होगा। दंड प्रक्रिया संहिता 1973 के स्थान पर भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 स्थापित होगा और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 के स्थान पर भारतीय साक्ष्य अधिनियम स्थापित होगा।
क्या कहती है आईपीसी की धारा 124ए
भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124ए राजद्रोह से संबंधित है। इस धारा के अनुसार “जो कोई भी शब्दों के माध्यम से या मौखिक या लिखित या संकेतों द्वारा या दृश्य प्रतिनिधित्व द्वारा भारत में कानून द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घृणा या अवमानना लाता है या उत्तेजित करने का प्रयास करता है, उसे आजीवन कारावास की सजा दी जाएगी। इसमें जुर्माना जोड़ा जा सकता है या कारावास को तीन साल तक बढ़ाया जा सकता है, उसमें जुर्माना जोड़ा जा सकता है या जुर्माना लगाया जा सकता है।“
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क्या कहती है भारतीय न्याय संहिता की धारा 150
भारतीय न्याय संहिता की धारा 150 भारत की एकता, संप्रभुता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कार्यों से संबंधित है। इस धारा में सशस्त्र विद्रोह, विध्वंसक गतिविधियों, अलगाव, अलगाववादी गतिविधियों का संदर्भ जोड़ा गया है।
इस धारा के अनुसार “’जो कोई भी जानबूझकर या शब्दों के माध्यम से या तो मौखिक या लिखित या संकेतों या दृश्य प्रतिनिधित्व या इलेक्ट्रॉनिक संचार या वित्तीय साधनों का उपयोग करके या, उत्तेजित करता है या उत्तेजित करने का प्रयास करता है, अलगाववाद या सशस्त्र विद्रोह या विध्वंसक गतिविधियों को उत्तेजित करता है या प्रयास करता है या अलगाववादी गतिविधियों की भावनाओं को प्रोत्साहित करता है या भारत की संप्रभुता या एकता और अखंडता को खतरे में डालता है या इस तरह के किसी भी कृत्य में शामिल होने या करने पर आजीवन कारावास या सात साल तक के कारावास से दंडित किया जाएगा और जुर्माना भी लगाया जाएगा।”