मुंबई। महाराष्ट्र की राजनीति में रविवार का दिन बेहद उथल पुथल वाला रहा। जहां एक तरफ शिवसेना और भाजपा के गठबंधन में दरार की खबरें चल रही थी ऐसे में अचानक विपक्ष के नेता अजित पवार अपनी ही पार्टी को झटका देते हुए एनडीए में शामिल हो गए हैं।
इतना ही नहीं अजित पवार ने दोपहर में डिप्टी सीएम पद की शपथ भी ले ली। शपथ लेने के बाद अजित पवार ने दावा किया है कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और उसका सिंबल उनका है। अजित पवार के दावे के कुछ देर बाद एनसीपी के अध्यक्ष शरद पवार ने अजित पवार की बात का खंडन करते हुए कहा कि वे पार्टी के अध्यक्ष है और एनसीपी भाजपा के साथ नहीं है।
एनसीपी में अबतक
ऐसे में चर्चा चल रही है कि ऐसा क्या हो गया जिसकी वजह से अचानक भतीजे अजित पवार ने अपने चाचा शरद पवार का साथ छोड़ दिया। सूत्रों की माने तो राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) में दरार उसके 25वे स्थापना दिवस समारोह से ही पड़ना शुरू हो गई थी। दरअसल स्थापना दिवस पर शरद पवार ने अचानक अपनी बेटी सुप्रिया सुले एवं पार्टी के उपाध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल को कार्यकारी अध्यक्ष घोषित कर दिया था। इस पूरी घोषणा में शरद पवार ने अजित पवार को लेकर कोई घोषणा नहीं की थी।
इतना ही नहीं शरद पवार ने यह भी ऐलान कर दिया था कि महाराष्ट्र, हरियाणा और पंजाब की जिम्मेदारी भी सुप्रिया सुलेन का दी जा रही है। अनुमान लगाया जा रहा है तभी से अजित पवार और शरद पवार के बीच दरार बनना शुरू हो गई थी और अजित पवार के अचानक एनडीए में शामिल होने से यह दरार ने अब खाई का रूप ले लिया है।
एनसीपी में चाचा शरद पवार और भतीजे अजित पवार के बीच दरार की शुरूआत नवंबर 2019 से ही शुरू हो गई थी। गौरतलब हो कि 2019 में हुए चुनाव में भाजपा उस समय की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी लेकिन बहुमत सावित करने में भाजपा नाकाम हो रही थी। इस चुनाव में भाजपा ने 105, शिवसेना ने 56, एनसीपी ने 54 और कांग्रेस ने 44 सीटें जीती थी।
इस चुनाव में भाजपा के साथ चुनाव लडने वाली शिवसेना ने मुख्यमंत्री के मुद्दे पर भाजपा के साथ गठबंधन तोड दिया था। शिव सेना से गठबंधन समाप्त होने के बाद भाजपा बहुमत से दूर हो गई थी। ऐसे में अजित पवार ने बिना अपने चाचा और पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार से चर्चा किए बिना ही भाजपा के साथ गठबंधन कर लिया। इस गठबंधन के बाद देवेन्द्र फडणवीस सीएम और अजित पवार डिप्टी सीएम बने थे।
इस पूरे मामले में अजित पवार ने खुद के बल पर यह सब किया था और इसमें शरद पवार की मंजूरी नहीं थी। इसलिए इसे पार्टी के साथ बगावत के रूप में देखा गया। परिणाम स्वरूप पांच दिन के अंदर ही एनसीपी ने अपना समर्थन वापस ले लिया। ऐसे में अजित पवार चाहते हुए भी भाजपा का समर्थन नहीं कर पाए और देवेन्द्र फडणवीस की सरकार गिर गई। जिसका फायदा उठाते हुए शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना ली। इसमें उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने जबकि अजित पवार को डिप्टी सीएम का पद मिला। आपसी कलह के चलते शिवसेना के दो फाड़ हो गए जिसकी वजह से शिवसेना की सरकार गिर गई और वापस भाजपा की सरकार बन गई। वहीं दूसरी तरफ एनसीपी भी दो गुटों में बट गया है।
जहां पहला गुट अजित पवार के समर्थन वाला गुट है जो भाजपा के साथ मिलकर महाराष्ट्र में राजनीति करना चाहता है वहीं दूसरी तरफ शरद पवार और उनका गुट इसके खिलाफ है। एनसीपी में हो रही गुटवाजी के नाराज होकर ही दो मई को शरद पवार ने अचानक अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था हालांकि बाद में नेताओं के दवाब में आकर उन्होंने इस्तीफा वापस ले लिया था। उसी समय तय हो गया था कि शरद पवार कुछ बड़ा करने वाले हैं। पार्टी के स्थापना दिवस समारोह में शरद पवार ने दो कार्यकारी अध्यक्षों के नामों का एलान कर अपनी नाराजगी साफ दिखा दी थी।
नाराज थे अजित
राजनीतिक गलियारों में चर्चा चल रही है कि कार्यकारी अध्यक्षों के नामों की घोषणा के बाद से ही अजित पवार एनसीपी से नाराज चल रहे थे। हालांकि पार्टी इस पर लगातार पर्दा डाल रही थी। वहीं शरद पवार और अजित पवार दोनों ही सबसे सामने नाराजगी नहीं दिखा रहे है। किन्तु रविवार को हुई इस घटना ने साफ कर दिया है कि एनसीपी दो गुटों में बट गई है और शरद पवार अपने भतीजे को मनाने में पूरी तरह से नाकामयाब साबित हुए हैं।