हरियाणा में फिर भाजपा

Haryana: हरियाणा में भाजपा ने रचा इतिहास, जानिए कैसे हार को बदला जीत में?

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हरियाणा विधानसभा चुनाव के परिणामों ने इस बार सभी को चौंका दिया। एग्जिट पोल्स के नतीजों के बाद कांग्रेस जीत को लेकर आश्वस्त थी। हरियाणा चुनाव को लेकर एग्जिट पोल्स से लेकर सियासी गलियारों तक यही संकेत मिल रहे थे कि भाजपा इस बार चुनाव में हार का मुंह देखेगी। अपनी जीत को लेकर आश्वस्त कांग्रेस में कमान सौंपने को लेकर मंथन भी होने लगा था। अंदर खाने भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कुमारी सैलजा और रणदीप सुरजेवाला तीनों नेता स्वयं को मुख्यमंत्री पद पर दावेदारी को लेकर ताल ठोंक रहे थे।

चुनाव के दौरान भी युवाओं में किसान, पहलवान और बेराजगारी जैसे मुद्दे को कांग्रेस जोरशोर से उठा रही थी। इस सबके बावजूद भाजपा कांग्रेस के मुंह से जीत को निकालकर ले गई। आइए जानते हैं भाजपा की जीत के प्रमुख कारण।

हरियाणा में भाजपा ने किया आंतरिक सर्वेक्षण

यदि हम भाजपा के आंतरिक सर्वेक्षण की बात करें तो भाजपा ने भी 35 से 38 सीटों का अनुमान लगाया गया था। अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए इसके बाद भाजपा ने 18 अन्य सीटों पर अपना ध्यान केंद्रित किया जहां पर मुकाबला बहुकोणीय था। दूसरी तरफ 39 ऐसी सीटों पर भी भाजपा ने जोर लगाया जहां उसका सीधा मुकाबला कांग्रेस से था। वहीं मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी भी कह चुके थे कि यदि गठबंधन की आवश्यकता पड़ी तो सारी व्यवस्थाएं हैं। 

कम मतदान के बाद तख्ता पलट की बढ़ी थी संभावना

विधानसभा चुनाव के इतिहास में यह चौथा अवसर था जब कम मतदान के बाद भी सत्ता परिवर्तन नहीं हुआ। अन्यथा अभी तक का इतिहास रहा है कि जब भी मतदान का प्रतिशत गिरा है सत्ता परिवर्तन हुआ है। कम मतदान को हमेशा से सत्ता विरोधी लहर के रूप में देखा जाता है। चूंकि पिछले 10 वर्षों से भाजपा की सत्ता रही है ऐसे में अनुमान लगाया जा रहा था कि कम मतदान का सीधा असर भाजपा पर पड़ने वाला है।

कांग्रेस के मुद्दों को बनाया हथियार

हरियाणा चुनाव में बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा रहा। कांग्रेस ने भी इसी मुद्दे पर युवाओं से वोट मांगे। ऐसे में भाजपा ने एक लाख 40 हजार युवाओं को सरकारी नौकरी देने का वादा कर युवाओ को अपने पक्ष में कर लिया। बता दें राज्य में 18 से 39 साल के युवाओं की संख्या करीब 94 लाख हैं।

गौरतलब हो कि हरियाणा में सरकार बनाने में दलितों की अहम भूमिका रही है। राज्य में करीब 21 फीसदी दलित हैं। वहीं 17 सीटें अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व हैं। इसी कारण से भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों ने दलित वर्ग को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। चुनाव के दौरान उस समय एक नया मोड़ आया जब कांग्रेस के प्रचार से सांसद कुमारी सैलजा ने दूरी बना ली वहीं भाजपा ने इस मुद्दे को अच्छी तरह भुनाया।

हरियाणा में 60 प्रतिशत से अधिक विधानसभा सीटें ग्रामीण इलाकों में हैं। किसान आंदोलन के बाद से किसान भाजपा से नाराज चल रहा था। किसानों को अपने पक्ष में लाने के लिए भाजपा ने 24 फसलों को एमएसपी पर खरीदने का एलान कर दिया। भाजपा के इस एलान के बाद किसानों की भाजपा से नाराजगी दूर हो गई थी।

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