दोस्तों कहावते तो हम सभी ने कभी न कभी सुनी ही हागी जैसे भैस के आगे बीन बजाना, कहा राजा भोज कहा गंगु तेली, नाच न जाने आंगन टेड़ा आदि हमारे घर के बड़े बुजुर्ग अकसर ही हमें कुछ सिखाने या सबक देने के लिए इन कहावतों का इस्तेमाल करते हैं पर क्या कभी आप लोगों ने सोचा इन कहावतों की शुरूआत अखिर कहा से हुई किस ने इन्हें कहा, क्या है इन के पिछे की रहस्यमेई कहानी। तो दोस्तों आप सही जगह आए है यह हम आप के सभी सवालों के जवाब देंगे।
कहा राजा भोज कहा गंगु तेली
दोस्तों इस कहावत के पीछे 3 राजाओं की कहानी हैं। एक बार दो राजा हुआ करते थे। एक नरेश गंगेय और दूसरा तिलंगा इन दोनों ने मिलकर राजा भोज की नगरी पर कब्जा करने के मकसद से हमला कर दिया।
पर दोस्तों राजा भोज की छोटी सेना होने के बावजूद राजा भोज ने इन दोनों को पराजित किया और अपने राज्य से बाहर खदेड़ दिया। तब से यह कहावत प्रचलित है कि कहा राजा भोज कहा गंगु तेली। गंगु का मतलब राजा नरेश गंगेया और तेली का मतलब राजा तिलंगा।
तूझे एक फूटी कौड़ी नही दूंगा
दोस्तों यह तो हर घर की कहानी है अकसर ही लोगों को आपने यह बात कहते सुना होगा। तुझे एक फूटी कौड़ी नही दुंगा तो क्या कभी आप लोागों ने सोचा कि ये फूटी कौड़ी आखिर क्या होता है क्या पैसे को फोड़ कर देते हैं। या कुछ और तो दोस्तों फूटी कौड़ी कभी प्राचीन भारत की एक मुद्रा हुआ करती थी।
उस समय में 3 फूटी कौड़ी के बारबर1 कौड़ी होती हैं और 10 कौड़ी के बराबर 1 दमड़ी यदी आप के पास 2 दमड़ी हो तो वह 1 धेला बनता है। 1 धेला 1.5 पाई के बराबर होता है। इस प्रकार पैसे की सबसे छोटी इकाई भी ना देने को ही फूटी कौड़ी ना देना कहा जाता है।
अकल बढ़ी या भैंस
यह कहावत तो हम लोग बचपन से सुनते आए है ऐसा इस लिए क्योंकि यह कहावत हमें स्कूल की किताब में थी। क्या आप को याद है पहलवान और बुद्धिमान व्यक्ति की वो कहानी। दोस्तों एक बार एक व्यक्ति और एक पहलवान में इस बात को लेकर बहस हो जाती है कि ज्यादा ताकतवर कौन है।
तभी वह व्यक्ति पहलवान से कहता है यह कपड़ा है जो इसे दिवार के उस पार फेक देंगा वही सबसे ताकतवर माना जाएगा। पहलवान ने कहा बस इतनी सी बात और अपनी पूरी ताकत से उस कपड़े को दीवार के पार फेंका पर कपड़ा हवा के विपरीत होने के कारण वापस आ गया।
पहलवान ने दोबारा कोशिश की पर कपड़ा फिर से वापस आ गया। अंत में पहलवान ने हार मान ली। जिस के बाद उस व्यक्ति ने उस कपड़े में पास में पड़े एक पत्थर को बाधां और दीवार के उस पार फेंक दिया। तभी से यह कहावत प्रचलित है अकल बढ़ी या भैंस।
मन चंगा तो कटौती में गंगा
एक बार संत रवीदास अपनी कुटीया में प्रभू का ध्यान कर रहे थे। तभी वहां एक व्यक्ति आता है और कहता है कि मैं गंगा के दर्शन करने जा रहा हूं। संत रवीदास उसे कुछ पैसे देते है और कहते है यह मेरी तरफ से गंगा में चड़ा देना। व्यक्ति ऐसा ही करता वह संत जी के दिए पैसे गंगा में चड़ा देता हैं।
तभी गंगा में से एक हाथ बाहर आता हैं और उस व्यक्ति को एक स्वर्ण का कंगन दे जाता हैं। उस व्यक्ति ने वह कंगन राजा को दे दिया और राजा ने वह रानी को भेट कर दिया। रानी ने राजा से वैसा ही एक और कंगन अपने दूसरे हाथ के लिए मांगा। राजा ने उस व्यक्ति को आदेश दिया कि उसे वैसा ही एक और कंगन लाके दे।
वह व्यक्ति दोबारा संत रवीदास के पास गया और उन्हें सारी बात बताई तो संत जी ने अपनी कटौती उठाई और उस में पानी भरा कुछ ही देर में उस में वैसा ही कंगन उत्पंन हो गया तभी से यह कहावत प्रचलित है मन चंगा तो कटौती में गंगा।