रोहिणी व्रत किसे कहते है, क्या है महत्व एवं पूजन विधि

धर्म

रोहिणी व्रत हिन्दू एवं जैन दोनों धर्मों का महत्वपूर्ण पर्व है। यह व्रत रोहिणी नक्षत्र में पडने के कारण ही रोहिणी व्रत कहलाता है। यह व्रत विशेष रूप से पति की लम्बी आयु के लिए रखा जाता है। रोहिणी नक्षत्र में इस होने के कारण इस व्रत को रोहिणी व्रत कहा जाता है। वहीं जैन धर्म के अनुयायी इस दिन भगवान वासुपूज्य स्वामी की पूजा करते हैं। साथ ही उपवास भी रखने की भी मान्यता है।

शास्त्रों के अनुसार कुल 27 नक्षत्र होते हैं। हिन्दू वर्ष के एक माह में 27 नक्षत्र होते हैं। रोहिणी नक्षत्र प्रत्येक महीने के 27 वे दिन पड़ता है। यह 27 नक्षत्रों में से एक नक्षत्र है। रोहिणी नक्षत्र में किए जाने वाले व्रत को रोहिणी व्रत कहा जाता है।

व्रत से जुड़ी खास बात

यह व्रत हिन्दू और जैन धर्म दोनों समुदायों द्वारा मनाया जाता है। विशेष रूप से इस व्रत को महिलाओं के लिए अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। लेकिन यह व्रत महिला और पुरूष दोनों ही रखते हैं। जैन परिवारों की महिलाओं में इस व्रत का पालन करना आवश्यक बताया गया है। इस दिन भगवान वासुपूज्य की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इसे 3, 5 अथवा 7 वर्षों तक करने के बाद ही इसका उद्यापन किया जा सकता है।

रोहिणी व्रत महत्व

पंडित अमोद शर्मा ने बताया कि हिन्दू धर्म में मान्यता है कि इस व्रत को रखने से पति की आयु तो लम्बी होती ही है साथ ही इस व्रत को रखने से सुख, सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि इस व्रत को रखने से पूर्व जन्मों के पापों से मुक्ति मिल जाती है।

27 नक्षत्रों के नाम

1. अश्विन, 2. भरणी, 3. कृत्तिका, 4. रोहिणी, 5. मृगशिरा, 6. आर्द्रा, 7. पुनर्वसु, 8. पुष्य, 9. आश्लेषा, 10. मघा, 11. पूर्वाफाल्गुनी, 12. उत्तरा फाल्गुनी, 13. हस्त, 14. चित्रा, 15. स्वाति, 16. विशाखा, 17. अनुराधा, 18. ज्येष्ठा, 19. मूल, 20. पूर्वाषाढ़ा, 21. उत्तराषाढ़ा, 22. श्रवण, 23. घनिष्ठा, 24. शतभिषा, 25. पूर्वा भाद्रपद, 26. उत्तरा भाद्रपद और 27. रेवती

पूजा विधि

पंडित अमोद शर्मा ने बताया कि जिस दिन रोहिणी व्रत होता है उस दिन व्रत रखने वाले को ब्रह्म मुहूर्त में उठना चाहिए। नित्यक्रिया से निवृत होने के बाद गंगाजल युक्त पानी से स्नान करना चाहिए। उसके बाद आचमन कर व्रत का संकल्प लेना चाहिए और सू्र्य देव का अर्घ्य देना चाहिए। तत पश्चात भगवान वासुपूज्य स्वामी की पूजा करें। पूजा करते समय भगवान को फल, फूल और दूर्वा आदि अर्पित करें। उसके बाद व्रत कथा और आरती करें। पूजा के उपरांत आराध्यद देव से सुख, समृद्धि और खुशहाली की प्रार्थना करें। पूरे दिन उपवास रखकर शाम को सूर्य के अस्त होने से पहले आरती कर फलाहार करें। सूर्य अस्त के बाद कुछ भी नहीं खाना चाहिए। अगले दिन सामान्य दिनों की तरह पूजा पाठ संपन्न कर व्रत खोलना चाहिए। साथ ही गरीबों और जरूरतमंदों को सामर्थ के अनुसार दान अवश्य करना चाहिए।

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