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Iran-Israel: ईरान ने कभी इस्राइल को दी थी मान्यता, जाने दोस्ती से दुश्मनी का इतिहास

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ईरानी दूतावास पर हुए हमले के बाद ईरान और इस्राइल के बीच तनाव बढ़ता ही जा रहा है। दोनों देशों के बीच लगातार बढ़ता तनाव एक और युद्ध के संकेत दे रहा है। ईरान के सर्वोच्च नेत अयातुल्ला अली खामेनेई ने दूतावास पर हुए हमले के लिए इस्राइल को दंडित करने की बात कही दी। चेतावनी के बाद शनिवार रात ईरान ने इस्राइल पर 330 मिसाइलें दागी।

ईरान के इस हमले के बाद इस्राइल ने भी जवाबी कार्यवाही की चेतावनी दी है। ऐसे में दोनों देशों के बीच दुश्मनी बढ़ती हुई दिख रही है। आज ईरान और इस्राइल आपस में दुश्मन हो लेकिन एक समय था जब दोनों ही देशों के बीच दोस्ती हुआ करती थी। जानकार दोनों देशों में दुश्मनी की वजह ईरान की क्रांति को मान रहे हैं।

ईरान ने 1948 में इस्राइल को दी थी मान्यता

बता दें कि 1948 में ही इस्राइल का जन्म हुआ था। तभी पहली बार दुनिया के नक्शे में इसका नाम आया था। ईरान और इस्राइल के बीच दोस्ती की शुरूआत भी 1948 में हुई थी। इस्राइल की स्थापना के बाद उसे मान्यता देने वाला ईरान तुर्की के बाद दूसरा मुस्लिम बहुल देश था। उस समय ईरान में पहलवी राजवंश का शासन था।

मजेदार बात यह है कि ईरान जिस फलस्तीन के साथ खड़ा है उस फलस्तीन ने इस्राइल की मान्यता को नकबा अर्थात तबाही बताया था। ज्ञात हो कि 1948 में जब इस्राइल का जन्म हुआ था उस समय सात लाख से अधिक फलस्तीनियों को जबरन बेदखल व विस्थापित किया गया था।

1968 मे बने व्यापारिक संबंध

देश बनने के बाद इस्राइल गैर अरब राष्ट्रों के साथ संबंध स्थापित करना चाहता था। ईरान ने इस्राइल के प्रस्तावों का स्वागत करते हुए ईरान की राजधानी तेहरान में एक दूतावास की स्थापना की। इसके बाद दोनों ही देशों ने एक दूसरे के देश में अपने राजदूत नियुक्त किए।

जल्द ही दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंध बढ़ते गए। जल्द ही ईरान इस्राइल के लिए तेल आपूर्ति का प्रमुख स्त्रोत बन गया। व्यापारिक संबंधों को आगे बढ़ाते हुए 1968 में एक पाइपलाइन शुरू की गई जिसका उद्देश्य ईरान के तेल को इस्राइल और फिर यूरोप भेजना था।

सत्ता परिवर्तन के साथ 1979 दोनों देशों में पड़ी दरार

ईरान की सत्ता से शाह मोहम्मद रजा पहलवी को बेदखल कर शिया उलमा अयातुल्ला रुहोल्लाह खामेनेई ने सत्ता संभाल ली। सत्ता हस्तांतरण के साथ ही नए इस्लामी गणतंत्र ईरान का जन्म हुआ। ईरान में इस्लामी क्रांति का और यहीं से शुरु होती है इस्राइल और ईरान की दुश्मीन का नया अध्याय।

ईरान के नए सर्वोच्च नेता खामेनेई ने उस वक्त विश्व शक्तियों को ‘अहंकारी’ करार देते हुए उनके खिलाफत की नीति अपनाई। ईरान की नई सत्ता ने अमेरिका को ईरान में महान शैतान और इस्राइल को छोटा शैतान की संज्ञा दे दी।

 सत्ता हस्तानंतरण के बाद बनी नई सत्ता ने इस्राइल के साथ बने सभी संबंधों को तोड़ दिया और सभी उड़ान सेवाओं को रद्द कर दिया गया। जिसकी वजह से ईरान या इस्राइल के नागरिक एक दूसरे के देश में यात्रा नहीं कर सकते थे। इतना ही नहीं ईरान ने तहरान में बने इस्राइली दूतावास को फलस्तीनी दूतावास में तबदील कर दिया।

शक्ति और प्रभाव बढ़ाने के चक्कर में खराब हुए संबंध

दोनों देशों ने पूरे क्षेत्र में अपनी शक्ति और प्रभाव को मजबूत करने और बढ़ाने की भी कोशिश की। जिससे दोनों देशों के संबंध और खराब होते गए। इस्राइल  का कहना है कि ईरान ने सीरिया, इराक, लेबनान और यमन में राजनीतिक और सशस्त्र समूह खड़े किए और उन्हें आर्थिक मदद दी।

ईरान कई देशों में प्रॉक्सी नेटवर्क का समर्थन करता है। इस समूह को ‘प्रतिरोध की धुरी’ के रूप में जाना जाता है जो फलस्तीनी मुद्दे का समर्थन करने के साथ-साथ इस्राइल को एक प्रमुख दुश्मन मानते हैं। यह समूह इस्राइल के साथ-साथ अमेरिकी सेना को भी अपना दुश्मन मानता हैं।

जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण लेबनान में मौजूद हिजबुल्लाह संगठन है। इसका गठन 1982 में दक्षिणी लेबनान में इस्राइली कब्जे से लड़ने के लिए किया गया था।

2023 में हमास और इस्राइल हमले ने बढ़ाई दूरी

हमास और इस्राइल के बीच अक्तूबर 2023 में युद्ध शुरु हुआ। ईरान सशस्त्र हमास का भी समर्थन करता है, जिसने 7 अक्तूबर 2023 को इस्राइल पर हमला किया था।  इसके बाद से हिजबुल्लाह उत्तरी इस्राइल में रॉकेट से हमले कर रहा है।

वहीं ईरान ने यमन में हूती विद्रोहियों को भी सहायता प्रदान की है। इस समूह ने लाल सागर पर इस्राइली शहर इलियट पर मिसाइलें दागी हैं साथ ही शिपिंग जहाजों पर हमला भी किया है।

दूतावास हमले से उठी चिंगारी

1 अप्रैल को सीरिया में ईरानी दूतावास पर हुए हमले ने आग में घी डालने का काम किया है। दरअसल, इस्राइल का आरोप है कि ईरान लेबनान में हिजबुल्लाह को मिसाइलें और अन्य हथियार भेजने के लिए सीरियाई क्षेत्र का उपयोग करता है।

वहीं इस्राइल ने हथियारों की आवाजाही रोकने के लिए सीरिया में कई हवाई हमले किए हैं। इसी कड़ी में 1 अप्रैल को सीरिया की राजधानी दमिश्क में ईरानी वाणिज्य दूतावास पर हमला किया गया था। हमले में ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स (आईआरजीसी) के अल-कुद्स बल के एक वरिष्ठ कमांडर सहित 11 लोगों की मौत हो गई। ये सभी एक बैठक में भाग ले रहे थे। हमले का आरोप इस्राइल पर लगाया गया, परन्तु इस्राइल ने इसकी जिम्मेदारी नहीं ली।

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