एस्पार्टेम: कैंसर की चेतावनी के बाद भी जारी रह सकता है डाइट सोडा का इस्तेमाल, खाद्य पदार्थ में होता है उपयोग

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क्या आपको या आपके परिवार के किसी भी सदस्य को डाइट ड्रिंक पीने का शौक है तो आप अभी से सतर्क हो जाएं क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की एक एजेंसी ने चेतावनी दी है कि डाइट ड्रिंक के अधिक प्रयोग से आपको कैंसर जैसी गंभीर बीमार हो सकती है। एजेंसी के अनुसार चीनी के विकल्प के रूप में उपयोग किए जाने वाले एस्पार्टेम युक्त पेय पदार्थों का भारी मात्रा में सेवन करने से कैंसर का खतरा काफी बढ़ जाता है। उम्मीद जताई जा रही है कि इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (IARC) जल्द ही एस्पार्टेम को कैंसर पैदा करने वाले पदार्थों की श्रेणी में इसका नाम जोड़ सकती है।

क्या है एस्पार्टेम

एस्पार्टेम एक रासायनिक स्वीटनर है। इसका प्रयोग चीनी के विकल्प के रूप में किया जाता है। इसका प्रयोग 1980 से ही विभिन्न खाद्य और पेय उत्पादों में बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। यह बिना किलोजूल के चीनी से 200 गुना अधिक मीठा होता है साथ ही इसकी लागत भी कम होती है। कम लागत में अधिक मिठास होने के चलते संपूर्ण विश्व की कई खाद्य और पेय पदार्थ बनाने वाली कंपनियां एस्पार्टेम का सबसे अधिक उपयोग कर रही हैं। खाद्य एवं पेय पदार्थों में इसकी पहचान एडिटिव नंबर 951 से की जा सकती है। एस्पार्टेम के व्यावसायिक नामों में न्यूट्रास्वीट, इक्वल, शुगर ट्विन और कैंडेरेल शामिल हैं।

कहां होता है एस्पार्टेम का उपयोग

इसका उपयोग विभिन्न प्रकार के उत्पादों में किया जाता है जिसमें मुख्य रूप से कार्बोनेटेड पेय जैसे कोक ज़ीरो, डाइट कोक, पेप्सी मैक्स के साथ साथ कुछ घरेलू ब्रांड भी शामिल है। दही के साथ साथ कन्फेक्शनरी के कई खाद्य पदार्थों में भी एस्पार्टेम का उपयोग किया जाता है लेकिन गर्म तापमान पर स्थिर नहीं होने के चलते इसे बेक किए गए सामान में इसका उपयोग नहीं किया जाता है। इसके अतिरिक्त् इसका प्रयोग च्यूइंग गम, जिलेटिन, आइसक्रीम, टूथपेस्ट के साथ साथ कई दवाइयों में भी किया जाता है। कम लागत में उपलब्ध होने के कारण संपूर्ण विश्व में खाद्य और पेय पदार्थ बनाने वाली कंपनियां इसका सबसे अधिक प्रयोग करती हैं।

कितना सुरक्षित है एस्पार्टेम

एस्पार्टेम को लेकर पिछले काफी समय से विवाद चल रहा है। समय समय पर कई वैज्ञानिक इसके उपयोग पर उंगली उठा चुके हैं। WHO की रिपोर्ट के बाद वजन के अनुसार निश्चित मात्रा में इसके सेवन की बात कही जा रही है। जानकारी के अनुसार आस्ट्रेलिया में इसका दैनिक सेवन प्रति किला 40 मिलीग्राम जो लगभग 60 पाउच है। वहीं अमेरिका में इसका दैनिक सेवन 75 पाउच निर्धारित है। डब्ल्यूएचओ की इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर ने शुक्रवार को जारी अपनी एक रिपोर्ट में एस्पार्टेम को संभावित कैंसर पैदा करने वाले पदार्थों की सूची में शामिल करने की सिफारिश की थी। हालांकि इसके कुछ समय के बाद ही जेईसीएफए ने कहा है कि एक व्यक्ति एक दिन में 14 कैन तक डाइट ड्रिंक बिना किसी परेशानी के पी सकता है। हालांकि अभी तक संस्था की ओर से इसका कोई आधार प्रस्तुत नहीं किया गया है। कई वैज्ञानिकों का कहना है कि औसतन एक व्यक्ति इसका जितना सेवन करता है उससे अधिक की अनुमति दी गई है।

एस्पार्टेम को खतरनाक पदार्थों में शामिल करने की तैयार

एस्पार्टेम को इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर उन पदार्थों की श्रेणी में शामिल करेगी जिससे कैंसर होने की सबसे अधिक संभावना होती है। जानकारी के अनुसार ब्रिटिश के एक अखबार के अनुसार डब्ल्यूएचओ से जुड़े दो संगठनों ने स्वीकार किया है कि एस्पार्टेम को कैंसर के लिए जिम्मेदार कैटेगरी में शामिल किया गया है।

एस्पार्टेम पर क्या कहते हैं सर्वे

जानकारी के अनुसार यूरोप में 11 वर्षों तक 475000 लोगों पर सर्वे में पाया गया कि प्रति सप्ताह आहार शीतल पेय के प्रत्येक पेय से लीवर कैंसर का खतरा 6 प्रतिशत बढ़ जाता है। हालांकि वैज्ञानिकों का कहना है कि लिवर कैंसर के मरीजों की संख्या अभी काफी कम है। वहीं अमेरिका में एक अध्ययन में पाया गया है कि मधुमेह वाले मरीज यदि एक सप्ताह में दो से अधिक डिब्बे डाइट सोडा पीते हैं तो उनमें लीवर कैंसर का खतरा काफी बढ़ जाता है। वही अमेरिका में हुए एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि उन लोगों में कैंसर का खतरा अधिक होता है जो कभी धूम्रपान नहीं करते और दिन में दो से अधिक कृतिम रूप से मीठे पेय पीते हैं। हालांकि वैज्ञानिकों का मानना है कि इस पर अभी और अधिक शोध करने की आवश्यकता है।

खतरे के बाद भी जारी रह सकता है एस्पार्टेम का उपयोग

चीनी से 200 गुना अधिक मीठा होने और चीनी के मुकाबले कम लागत का होने के चलते कई कंपनियां इसका प्रयोग बड़े पैमाने पर कर रही हैं। विश्व की कई खाद्य और पेय निर्माता कंपनियों के लिए एस्पार्टेम एक पसंदीदा विकल्प के रूप में सामने आया है। जहां एक तरफ यह कम लागत में यह उपलब्ध हो जाता है वहीं दूसरी तरफ फलों में इसके उपयोग से उसके स्वाद को यह काफी बढ़ा देता है। वर्तमान में खाद्य और पेय पदार्थों में इसका उपयोग बडे़ पैमाने पर किया जा रहा है जिससे लोग इसके हादी होते जा रहे हैं।

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