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भाजपा की आपसी कलह ही ना ठोक दे ताबूत की आखरी कील

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बरेली में तीसरे चरण में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए चुनाव प्रचार समाप्त हो गया है। पार्टी में नाम घोषित होने से लेकर चुनाव प्रचार समाप्त होने तक कई स्थानों पर भाजपा में अंतरकलह देखने को मिली। ऐसे में पार्टी के कार्यकर्ताओं से लेकर वरिष्ठ नेताओं तक में डर का माहौल है। उन्हें डर है कि पार्टी की इस अंतरकलह से पार्टी को कहीं भारी नुक्सान न उठाना पड़े।

जानकारों की माने तो अंधरूनी कलह की जानकारी भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को भी है। हालांकि इसे दूर करने के लिए पार्टी द्वारा कई कदम उठाए गए हैं। बावजूद इसके कई स्थानों पर आपसी कलह साफ देखने को मिली।

वहीं कई स्थानों पर पार्टी प्रत्याशी के बड़बोलेपन से भी पार्टी को काफी नुक्सान हो सकता है। हालांकि संगठन से मिले सख्त आदेशों के बाद कार्यकर्ता काम तो करने के लिए तैयार हो गए है। लेकिन पूरी तरह से कार्यकर्ताओं और वोटरों को मनाने में वह भी असमर्थ हो रहे हैं।

दो खेमों में बटा पीलीभीत

पीलीभीत से वरूण गांधी को टिकट न मिलने से न केवल वरूण गांधी अपितु पार्टी के कई नेता और कार्यकर्ता नाराज हो गए थे। हालांकि कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए दस साल में पहली प्रधानमंत्री पीलीभीत गए। लेकिन वह भी वरूण गांधी को मनाने में नाकामयाब सिद्ध हुए।

प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में वरूण गांधी को ना बुलाने से भी कार्यकर्ता भाजपा से काफी नाराज दिखे। वहीं जतिन प्रसाद के दूसरे क्षेत्र का होने के कारण भी वह कार्यकर्ताओं से मधुर संबंध बनाने में नाकामयाब रहे।

आंवला में भाजपा प्रत्याशी के बड़बोलेपन से खफा हुए कार्यकर्ता

बात अगर आंवला की करें तो प्रारंभ में सब कुछ ठीक चल रहा था। लेकिन भाजपा प्रत्याशी के अचानक सुरबदलने और बड़बोलेपन के कारण पार्टी के कार्यकर्ताओं और वोटरों में रोष फैल गया। जानकारी के अनुसार योगी आदित्यनाथ ने इस चिंगारी को शांत करने की पूरी कोशिश की। लेकिन वोटरों के दिल में पड़ी दरार को पूरी तरह से पाटने में पार्टी नाकामयाब रही।

अहंम की लड़ाई में बटा बरेली

बरेली लोकसभा सीट को हमेशा ही भाजपा की पक्की सीट कहा जाता रहा है। लेकिन विधानसभा चुनाव के दौरान पप्पू भरतौल का टिकट काटने के बाद से कार्यकर्ताओं में रोष था। संतोष गंगवार का टिकट काटकर दूसरे क्षेत्र के नेता को प्रत्याशी बनाने से कई लोग नाराज नजर आ रहे थे।

जानकारों की माने तो इससे संतोष गंगवार भी काफी नाराज दिखे लेकिन आलाकमानों के आगे संतोष गंगवार झुक गए। लेकिन संतोष गंगवार और मेयर उमेश गौतम की बीच हुई गर्मा-गर्मी से कई कार्यकर्ता और वोटर उनसे नाराज हो गए।

मामले की गंभीरता को समझते हुए पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने मामले को संभाल लिया। इस पूरे मामले को शांत करने के लिए पार्टी के करीब आधा दर्जन बड़े नेताओं को बरेली का चक्कर लगाना पड़ा।

भाजपा के नेताओं की मेहनत कितना रंग लाएगी यह तो चुनाव परिणाम आने के बाद ही पता चलेगा। लेकिन एक बात साफ है कि इस आंतरिक कलह और बड़बोलेपन के कारण भाजपा को काफी नुक्सान हो सकता है। लेकिन इन गलतियों से भाजपा को सबक लेने की आवश्यकता है।

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