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मतदान में गिरावट से सभी दलों में हलचल, कम हो सकता है हार-जीत का अंतर

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दिल्ली। लोकसभा चुनाव में मतदान में गिरावट से सभी दलों में हलचल है। ऐसे में हार-जीत का अनुमान लगा पाना बहुत ही मुश्किल हो सकता है। जानकारों की माने तो जब भी मतदान में कमी आई है सत्ता का परिवर्तन हुआ है। ताजा रिपार्ट के अनुसार मतदान में 7 से 10 प्रतिशत तक मतदान में गिरावट आई है। मतदान में आई इस गिरावट से सभी दल असमंजस की स्थिती में हैं।

चुनाव आयोग द्वारा जारी आंकडों के अनुसार इस वर्ष पहले और दूसरे चरण में हुए मतदान का प्रतिशत क्रमश: 66.14 और 66.71 प्रतिशत दर्ज किया गया, वहीं 2019 में हुए चुनावों में पहले चरण में 69.43 और दूसरे चरण में 69.17 प्रतिशत मतदान हुआ था।

जो पिछले लोकसभा चुनाव के मुकावले काफी कम है। चुनाव आयोग के अनुसार दूसरे चरण में आठ लोकसभा क्षेत्रों में 7.57 प्रतिशत कम मतदान हुआ है। हालांकि इस वर्ष मतदान कम होने के पीछे कई कारण बताए जा रहे हैं।

मतदान कम होने के कारण

जानकार मतदान कम होने के लिए अलग अलग कारण बता रहे हैं। लेकिन प्रमुख कारणों में कहीं तेज धूप और कहीं खेतों में चल रहा काम रहा वहीं अधिकांश स्थानों पर मतदाताओं में मतदान को लेकर उदासीनता भी बताई जा रही है। मतदान में शहरी ही नहीं ग्रामीण इलाके में भी पिछले लोकसभा चुनाव जैसा उत्साह नहीं देखा गया है।

मतदान कम होने का परिणाम

सियासत के जानकारों की माने तो मतदान में कमी के फायदे और नुक्सान सभी दलों को होंगे। मतदान कम होने से हार और जीत के बीच का अंतर काफी कम हो सकता है। जिसकी वजह से सत्ता परिवतन का डर बना रहता है। कई लोकसभा क्षेत्र में कांटे की टक्कर हुई है। ऐसे में यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता कि ऊंट किस करवट बैठेगा। हालांकि हर दल में कम मतदान को लेकर बेचैनी साफ दिखाई दे रही है।  

जानकारों का मत

मतदान में गिरावट या बढ़ोतरी के अलग- अलग अर्थ होते हैं। साथ ही हर सीट का गणित अलग है। पिछले चुनाव में कई सीटों पर हार- जीत का अंतर अधिक रहा है। कम मतदान इस अंतर को कम कर सकता है। क्योंकि, मुस्लिम और दलित ज्यादा मतदान करते देखे गए हैं।

दूसरी तरफ एक वजह मतदाताओं की निश्चिंतता भी रही है कि चुनाव जीत ही जाएंगे। तीसरी बात यह है कि प्रत्याशी से जुड़ाव कम होना और सरकार के प्रति गुस्सा होने पर भी मतदान कम होता रहा है। 

मतदान कम होने से किसे होगा फायदा या नुक्सान

मतदान कम होने या ज्यादा होने के परिणामों को लेकर जल्दबाजी में कहना गलत होगा। लेकिन जिन सीटों पर वोट प्रतिशत में कमी या गिरावट आई है उसको लेकर एक खाका तैयार किया जा सकता है।

यदि हम इस वर्ष होने वाले चुनाव पर गौर करें तो पहले और दूसरे चरण में जिन सीटों पर चुनाव हुए हैं उनमें कुछ सीटें ऐसी भी हैं जहां मुस्लिम वोटर्स ज्यादा है उन सीटों पर वोटिंग परसेंटेज कम नहीं हुआ है। ऐसे में अनुमान लगाया जा रहा है इस वर्ष चुनाव परिणाम उम्मीद से अलग आ सकते हैं।

क्या सत्ताधारी दल को हो सकता है नुक्सान

यदि हम चुनाव का इतिहास देखें तो जब-जब मतदान में कमी आई है सरकार बदल गयी है। 1980 के चुनाव में मतदान में काफी गिरावट देखने को मिली थी और जनता पार्टी की सरकार सत्ता से हट गयी और उसके स्थान पर कांग्रेस की सरकार बन गयी थी।

वहीं 1989 में भी एक बार फिर से मतदान कम हुआ और कांग्रेस की सरकार चली गयी थी। 1991 में मतदान में गिरावट के साथ ही कांग्रेस ने वापसी की थी। वहीं 2004 में मतदान में गिरावट का सीधा फायदा विपक्ष को मिला था। वहीं 1999 में भी मतदान में गिरावट देखने को मिली लेकिन उसके बाद भी सत्ता परिवर्तन नहीं हुआ था।

मतदान में गिरावट का कारण मौसम या मतदाताओ की सुस्ती

मतदान में गिरावट न सिर्फ उत्तर भारत में अपितु दक्षिण भारत और पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में भी देखने को मिली है। उत्तर भारत में भीषण गर्मी को मतदान में कमी का कारण माना जा रहा है वहीं पूर्वोत्तर के पहाड़ी इलाकों में भी मतदान में गिरावट देखी जा रही है इसलिए मौसम को पूर्णरूप से उत्तरदायी मनना उचित नहीं होगा।

यदि हम पूरे भारत में एक ट्रेंड देखें तो लगभग सभी राज्यों में मतदान में 7 से 10 प्रतिशत की गिरावट देखी जा रही है। राजनीति के जानकार मतदान में हुई इस गिरावट के लिए उम्मीदवारों के प्रति लोगों की उदासीनता बता रहे हैं।

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