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Karpuri Thakur: 100वीं जयंती पर कर्पूरी ठाकुर को मिलेगा भारत रत्न, जानें पूरी कहानी

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भारत रत्न और पद्म पुरस्कारों का एलान अमूमन केन्द्र सरकार गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर करती है। इस बार सरकार ने गणतंत्र दिवस से दो दिन पहले ही भारत रत्न के बारे में एलान कर दिया है। इस वर्ष यह सम्मान दो बार बिहार के मुख्मंत्री रहे कर्पूरी ठाकुर को दिया जा रहा है। मरणोंपरांत उन्हें यह सम्मान दिया जा रहा है।

बता दें भारत रत्न सम्मान सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। आमतौर पर इस पुरस्कार का एलान गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर होता है। किन्तु इस बार सरकार ने गणतंत्र दिवस से पूर्व कर्पूरी ठाकुर की 100वीं जयंती से एक दिन पूर्व यह सम्मान देने का एलान किया है।

24 जनवरी को कर्पूरी ठाकुर की 100वीं जयंती है। उनकी पहचान स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक और एक राजनीतिज्ञ के रूप में होती है। कर्पूरी ठाकुर बिहार के दूसरे उपमख्यमंत्री थे तथा वह दो बार बिहार के मख्यमंत्री रह चुके हैं। उनकी लोकप्रियता के कारण ही उन्हें जन-नायक भी कहा जाता है।

कौन है कर्पूरी ठाकुर

कर्पूरी ठाकुर को बिहार की राजनीति में समाजवाद का बड़ा चेहरा माना जाता है। लालू प्रसाद यादव की गिनती उनके शागिर्द के रूप में होती है। कर्पूरी ठाकुर का जन्म साधारण नाई परिवार में हुआ था। उन्हें सामाजिक न्याय की क्रांति लाने वाले नेता के रूप में माना जाता है।

कहा जाता है कि उन्होंने पूरी जिंदगी कांग्रेस विरोधी राजनीति की और अपना एक अलग मुकाम हासिल किया। बताया जाता है कि आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी लाख कोशिश के बाद भी उन्हें गिरफ्तार नहीं करवा सकी थी।

मुख्यमंत्री के रूप में कर्पूरी ठाकुर का कार्यकाल

22 दिसंबर 1970 में कर्पूरी ठाकुर पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री की कमान संभाली थी। उनका पहला कार्यकाल मात्र 163 दिन का रहा। 1977 में वह दूसरी बार बिहार के मुख्यमंत्री चुने गए। हालांकि दूसरी बार भी वह अपना पूरा कार्यकाल नहीं कर सके।

दो साल से भी कम समय के कार्यकाल में कर्पूरी ठाकुर ने समाज के दबे और पिछड़े लोगों के हितों के लिए बहुत से कार्य किए। उन्होंने अपने कार्यकाल में मैट्रिक तक की पढ़ाई मुफ्त कर दी थी। इतना ही नहीं हिन्दी को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने राज्य के सभी विभागों में हिंदी में कार्य करने की अनिवार्यता बना दी थी।

कर्पूरी ठाकुर ने अपने कार्यकाल में गरीबों, पिछड़ों और अति पिछड़ों के हक में अनेक काम किए, जिससे बिहार की सियासत में कई परिवर्तन आए। इसके बाद कर्पूरी ठाकुर की राजनीतिक ताकत में जबरदस्त इजाफा हुआ और वो बिहार की सियासत में समाजवाद का बड़ा चेहरा बनकर उभर गए।

लालू और नीतिश के गुरू हैं कर्पूरी ठाकुर

बिहार में समाजवाद की राजनीति करने वाले लालू प्रसाद यादव और नीतिश कुमार कर्पूरी ठाकुर के ही शागिर्द है। जनता पार्टी के दौर में कर्पूरी ठाकुर की उंगली पकड़कर ही लालू प्रसाद और नीतिश कुमार ने सियासत के गुर सीखे थे।

कहा जाता है कि लालू प्रसाद यादव ने कर्पूरी ठाकुर के बताए रास्ते पर ही चलकर लोकप्रियता हासिल की थी। वहीं नीतिश कुमार ने भी अपने गुरू के पद चिंहों पर चलकर अपनी पहचान बनाई है।

बिहार की राजनीति में कर्पूरी ठाकुर

कर्पूरी ठाकुर का निधन 1988 में हो गया था लेकिन आज भी पिछड़े मतदाताओं के बीच उनका नाम सम्मान के साथ लिया जाता है। गौरतलब है कि बिहार में पिछड़ों और अतिपिछड़ों की आबादी करीब 52 प्रतिशत है।

उनकी लोक प्रियता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2020 के चुनाव में कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में कर्पूरी ठाकुर सुविधा केन्द्र खोलने का ऐलान किया था।

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