नई दिल्ली, दुर्ग दृष्टि डेस्क। वर्ष होली पर लोकसभा चुनावों का रंग खूब चढ़ा हुआ है। नेताओं के नाम की पिचकारी के अलावा भगवा टोपी और भगवा गुलाल की मांग बढ़ी हुई है। रंगों के त्यौहार पर होली मिलन समारोह भी चुनावी रंग में नजर आ रहे हैं। बड़े-बड़े नेताओं के फोटो वाली पिचकारियां और नेताओं के नाम की प्रिंटेड टी-शर्ट पहने कार्यकर्ता नजर आ रहे हैं। जिन नेताओं को पार्टी टिकट मिल गई है वह होली मिलन कार्यक्रमों के माध्यम से समाजों से सम्पर्क कायम कर रहे हैं।
हालांकि होली पर शुभकामनाओं के बैनर तो समाज के टंगे हुए हैं लेकिन पूरे के पूरे कार्यक्रम राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों द्वारा प्रायोजित हैं। आदर्श चुनाव संहिता लागू होने के बाद चुनाव आयोग इन कार्यक्रमों पर कितनी नजर रख पाएगा, यह कहना मुश्किल है।
गांव, कस्बों और शहरों से लेकर पहाड़ों तक सभी राजनीतिक दलों ने इस पर्व को मनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। लोकतंत्र के महापर्व में अबीर-गुलाल के साथ सियासी रंग की चमक खूब निखर रही है। जिन सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा अभी बाकी है।
वहां के इच्छुक टिकटार्थी भी हाथों में गुलाल लिए अपने आकाओं के यहां हाजरी लगाने और आगे से आगे बढ़कर उन्हें गुलाल लगाने की प्रतिस्पर्धा करते नजर आ रहे हैं। कुल मिलाकर इस बार की होली में राजनीति का तड़का खूब लग रहा है।
साधारण तौर पर यह त्यौहार सभी दलों के राजनेताओं को एक साथ लाने के लिए जाना जाता था। यह एक ऐसा अवसर होता है जब राजनेता वैचारिक मतभेदों से ऊपर उठकर त्यौहार मनाते हैं लेकिन पिछले कुछ समय से राजनीतिक गलियारों में माहौल बिल्कुल अलग है।
आरोप-प्रत्यारोपों के रंग उड़ रहे हैं। विपक्षी दल सरकार के विरोध में होलिका दहन कर रहे है वहीं दूसरी तरफ सत्तारूढ़ दल भ्रष्टाचार की होलिका का दहन कर रहे हैं। जो पर्व किसी समय में रंगों का पर्व कहलाता था आज बयानबाजी और आरोपों का त्यौहार बन गया है।
राजनीतिज्ञों की बिरादरी का शीर्ष नेतृत्व पिछली पीढ़ी से बहुत अलग दिखाई देता है। पुरानी पीढ़ी के नेता भाईचारे की सच्ची भावना के साथ त्यौहार का आनंद लेते थे। एक-दूसरे को गले लगाते थे लेकिन आज इस त्यौहार पर भाईचारे का रंग उतरा हुआ सा दिखाई देता है।
जो नेता जेल पहुंच चुके हैं उनके दोस्त और पार्टी के नेताओं के चेहरों पर त्यौहार का कोई रंग नहीं दिखाई दे रहा। सत्तारूढ़ दल उन पर तीखे बयान दाग रहे हैं। त्यौहार की मर्यादाएं टूटती जा रही हैं। बयानबाजी भी ऐसी कि राजनीतिक शालीनता की सारी हदें टूट रही हैं।
राजनीति पर पैनी नजर रखने वाले चिंतित हैं। क्योंकि प्रेम का संदेश फैलाने वाले त्यौहार पर कड़वी प्रतिद्वंद्विता नजर आ रही है। जहां किसी समय में होली के आयोजन में होली और कृष्ण भक्ति के गीत गूंजते थे लेकिन आज उनकी जगह राजनीतिक गीतों ने ले ली है।
आलम यह है कि आपसी प्रेम का त्यौहार कहे जाने वाले इस पर्व पर आजकल प्रत्येक मोहल्ले में भैया साहब की पहली, ठाकुर साहब की दूसरी, और नेताजी की तीसरी होली जलती रहती है। यानी हर नेता की होली। आज राजनीति इस तरह हावी है कि होली भले ही होली की न रहे, पूरी तरह राजनीति की हो चुकी है।
यह वास्तविकता है कि बाकी त्यौहारों की तरह होली के त्यौहार ने भी आधुनिकता का रूप ले लिया है। इस पर्व पर बाजारवाद एवं दिखावा पूरी तरह हावी हो गया है। यह फूहड़ता और हुड़दंगबाजी का त्यौहार बनकर रह गया है। नैतिकता और मर्यादा का पतन हो रहा है।
बेहतर यही होगा कि इस त्यौहार पर हम सब सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से एक-दूसरे से जुड़ने का काम करें और इस त्यौहार को मिल-जुलकर और प्रेम से मनाएं ताकि सामाजिक भेदभाव को खत्म किया जा सके। नकारात्मक शक्तियों को दूर करें और साकारात्मक विचारों को अपने भीतर लाएं।
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